“बालक के व्यक्तित्व पर वातावरण का प्रभाव”
भूमिका- प्राणी के विकास में वातावरण का विशेष महत्व माना जाता है।मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बालक किसी भी वंश परंपरा का क्यों ना हो उसे यदि उपयुक्त वातावरण प्राप्त हो तो उसे डॉक्टर, इंजीनियर, कवि आदि बनाया जा सकता है।
वातावरण में वे सभी उत्तेजनाएं सम्मिलित की जाती हैं जो किसी व्यक्ति को उसके गर्भाधान के समय से मृत्यु तक प्राप्त होती हैं,
जो व्यक्ति पर अपना प्रभाव गर्भाधान से मृत्यु तक दर्शाती हैं।व्यक्ति के चारों तरफ जो भी पाया जाता है उसे उस व्यक्ति का वातावरण कहते हैं। अतः हमारी आज की चर्चा इसी परिप्रेक्ष्य में होने वाली है-
‘वातावरण’ के लिए ‘पर्यावरण’ शब्द का भी प्रयोग किया जाता है।
पर्यावरण शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। परी +आवरण परी का अर्थ है ‘चारों ओर’ एवं आवरण का अर्थ है ‘ ढकने वाला’।
इस प्रकार पर्यावरण या वातावरण से तात्पर्य उस वस्तु से है जो चारों ओर से ढके या घेरे रहता है।
वुडवर्ड के अनुसार, “वातावरण में वे सब बाह्य तत्व आते हैं जिन्होंने व्यक्ति को जीवन आरंभ करने के समय से प्रभावित किया है।”
वर्तमान मनोवैज्ञानिकों ने वातावरण के महत्व से संबंधित अनेक अध्ययन द्वारा स्पष्ट किया है कि बालक के व्यक्तित्व के प्रत्येक पहलू पर सामाजिक, सांस्कृतिक व भौगोलिक वातावरण का व्यापक प्रभाव पड़ता है।
कुछ मनोवैज्ञानिकों के अध्ययन के अनुसार इस प्रभाव का वर्णन निम्न प्रकार से किया जा सकता है-
मानसिक विकास पर प्रभाव:-
उचित वातावरण प्राप्त न होने पर बालक का मानसिक विकास अत्यंत प्रभावित होता है।
उसके मानसिक विकास की गतिमंद हो जाती है।
इस विषय पर गोर्डन का मत है कि ,”उचित सामाजिक व
सांस्कृतिक ,वातावरण न मिलने पर बालक के मानसिक विकास की गति मंद पड़ जाती है।उसके द्वारा यह बात नदियों के किनारे रहने वाले बच्चों के अध्ययन द्वारा स्पष्ट की गई जिसमें उनके द्वारा देखा गया कि इन बच्चों का वातावरण गंदा व समाज के अच्छे प्रभावों से दूर है।”
शारीरिक अंतर पर प्रभाव:- फ्रेंज बोन्स के अनुसार विभिन्न प्रजातियों के शारीरिक अंतर का मुख्य कारण उनका वंशानुक्रम न होकर वातावरण है। जैसे जो जापानी व यहूदी, अमेरिका में अनेक पीढ़ियों से लगातार निवास कर रहे हैं उनकी लंबाई भौगोलिक वातावरण के कारण बढ़ गई है।
व्यक्तित्व पर प्रभाव:- कूले के मताअनुसार, व्यक्तित्व के निर्माण में वंशानुक्रम की अपेक्षा वातावरण का अत्यधिक प्रभाव पाया जाता है।
उसके द्वारा यह भी सिद्ध किया गया कि कोई भी व्यक्ति उपयुक्त वातावरण में रहकर अपने व्यक्तित्व का निर्माण करके महान् बन सकता है।
इस संबंध में उसने यूरोप के 71 साहित्यकारों के उदाहरण देकर बताया है।
प्रजाति की विशेषता पर प्रभाव:- क्लार्क के मतानुसार कुछ, प्रजातियों की बौद्धिक श्रेष्ठता का कारण वंशानुक्रम न होकर वातावरण होता है।
बुद्धि पर प्रभाव:-
कैंडोल ने बताया है कि, बुद्धि के विकास में वंशानुक्रम की अपेक्षा वातावरण का अत्यंत प्रभाव पड़ता है।
बालक पर बहुमुखी प्रभाव:- वातावरण का प्रभाव बालक के शारीरिक ,सामाजिक, मानसिक, संवेगात्मक आदि सभी पहलुओं पर पड़ता है।
अनाथ बच्चों पर प्रभाव:- समाज कल्याण केंद्रों के अंतर्गत कुछ अनाथ और परावलंबी बच्चे आते हैं जो साधारणतया निम्न परिवार से आते हैं परंतु केन्द्रों में अच्छी देखभाल व पालन- पोषण किया जाता है ,उनको अच्छे वातावरण में रखा जाता है, उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाता है। इस प्रकार से वातावरण में रखे गए बच्चों के विषय में वूडवर्क ने लिखा है “वह समग्र रूप में अपने माता एवं पिता से अच्छे सिद्ध होंगे।”
जुड़वां बच्चों पर प्रभाव:- जुड़वा बच्चों के अंतर्गत माना जाता है कि उनके शारीरिक लक्षण मानसिक शक्तियों और शैक्षिक योग्यताओं में अत्यंत समानता पाई जाती है।
न्यूमैन, फ्रीमैन और होलजिंगर ने20 जुड़वा बच्चों को,
अलग-अलग वातावरण प्रदान किया तथा उन सब का अध्ययन किया ,तो बड़े होने पर उनमें पर्याप्त अंतर पाया गया।
संक्षेप में –
हम कह सकते हैं कि व्यक्ति के चारों ओर जो कुछ है, वह उस व्यक्ति का वातावरण कहलाता है। इसके अंतर्गत वे सभी तत्व शामिल किए जाते हैं जो व्यक्ति के जीवन व व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
एक बच्चा जितना अधिक से अधिक उपयुक्त या उत्तम वातावरण में रहता है वह उतना ही अधिक पर्यावरण की ओर प्रवृत्त रहता है ।
यदि एक बच्चा बुद्धिमान माता-पिता के साथ अधिक समय तक रहता है तो वह उतना ही अधिक बुद्धिमान होगा, जितना बच्चा चतुर माता-पिता के साथ रहेगा बच्चा उतना अधिक चतुर होगा।