“शारीरिक शिक्षा व दर्शनशास्त्र”

"शारीरिक शिक्षा व दर्शनशास्त्र"

“शारीरिक शिक्षा व दर्शनशास्त्र”
भूमिका_
दर्शनशास्त्र का संबंध उस विषय से है जो व्यक्ति को बुद्धिमान एवं तत्वज्ञानी बनाता है ।वास्तव में दर्शन वह विज्ञान है जो आत्मा, परमात्मा, सृष्टि, जीवन मूल्य ,तर्क आदि से संबंध रखता है,इसके माध्यम से एक व्यक्ति ब्रह्मांड के रहस्य तथा उसमें निहित अर्थों के गुण निकालता है।”शारीरिक शिक्षा व दर्शनशास्त्र” दार्शनिक सिद्धांतों और व्यवहारिकताओं को वास्तव में यूनान के विशेषज्ञों ने जन्म दिया। प्लेटो तथा अरस्तु नामक महान दार्शनिकों ने शारीरिक शिक्षा के दार्शनिक सिद्धांतों की नींव रखी।अतः आज की हमारी चर्चा का संबंध इसी संदर्भ में होने वाला है_
दर्शनशास्त्र के मुख्य 6 भाग माने गए हैं जिसका वर्णन निम्नलिखित है_
पहला- अध्यात्म शास्त्र (मेटाफिजिक)जीवन के अस्तित्व संबंधित सिद्धांत तथा मनुष्य और प्रकृति के मध्य संबंध की वास्तविकता का अध्ययन करना ही अध्यात्म शास्त्र कहलाता है। जन्म, मृत्यु ,देवी देवता ,भूत- प्रेत, आत्मा, परमात्मा आदि इस शास्त्र की विषय वस्तु है।दूसरा- ज्ञान शास्त्र (एपिस्टिमोलॉजि ) सत्य को प्रकाशित करना इस शास्त्र का धेयय है, इसके अंतर्गत ज्ञान का प्रकाश, ज्ञान का उपार्जन तथा उसके सिद्धांतों का अध्ययन किया जाता है।तीसरा_ सूक्ति शास्त्र( एक्सियोलॉजी )यह शास्त्र सत्य के उपयोग तथा न्याय देने के सिद्धांतों की विवेचना करता है।
चौथा नीति शास्त्र (एथिक्स) इस शास्त्र के अंतर्गत नैतिक चरित्र तथा जीवन के उच्चतम स्तर को प्राप्त करने का अध्ययन किया जाता है।पांचवा- तर्क शास्त्र (लॉजिक) यह शास्त्र सोचने विचारने तथा बुद्धिमत्ता ढंग से जीने के सिद्धांतों से संबंधित है। इसके अंतर्गत अपनी बात को तर्क के साथ प्रस्तुत करना तथा अपने विचारों में एक क्रम एवं लय विकसित करना आदि आते हैं। छठासौंदर्य शास्त्र (एस्थेटिक्स) प्रकृति तथा कलाओं में सौंदर्य के सिद्धांतों का इस शास्त्र के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है।
अब यहां इस परिप्रेक्ष्य में शारीरिक शिक्षा के अंतर्गत आने वाले विभिन्न दर्शन के बारे में भी चर्चा कर लेना आवश्यक है_जैसे

आदर्शवाद (आइडियालिज्म)- इस दर्शन के प्रवर्तक प्लेटो हैं। शारीरिक शिक्षा में व्यक्तित्व का विकास आदर्शवाद के द्वारा होता है ,मतलब आदर्शवाद व्यक्तित्व को निखारता है। आदर्शवाद नैतिक विचार को सपोर्ट करता है, सत्यम ,शिवम और सुंदरम इसका उदाहरण है ।यह दर्शन ‘अध्यापक और पाठ्यक्रम’ केंद्रित है। इसका नारा है ‘एजुकेशन फॉर ग्रोथ’।

प्रकृतिवाद (नेचुरलिज्म)यह सबसे प्राचीन दर्शन है जो वास्तविकता पर आधारित है। ‘प्लेइंग द गेम इन द स्प्रिट ऑफ गेम’ इसका उदाहरण है। यह दर्शन बाल केंद्रित होता है। इसका नारा है ‘एजुकेशन इन नेचुरल एनवायरनमेंट’।इस दर्शन के प्रतिपादक रूसो को माना जाता है ।प्रकृतिवाद में केंद्र बिंदु विश्व के भौतिक तत्व हैं सत्य प्रकृति के भौतिक अस्तित्व में ही निहित है।प्रकृतिवादी दार्शनिक केवल भौतिक संसार को ही सत्य मानते हैं ।प्रकृति जीवन मूल्यों का स्रोत है तथा प्रत्येक व्यक्ति के विकास का निर्धारण करते हैं।

यथार्थवाद (रियलिज्म)यथार्थवाद का पितामह अरस्तु को माना जाता है।यथार्थवाद दुनिया की उत्पत्ति और अस्तित्व को भौतिक मानता है।यह दर्शन पूरी तरह से विज्ञान पर आधारित होता।स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क वास करता है’।(साउंड माइंड इन अ साउंड बॉडी) इसके उदाहरण है। इसमें सेंस को डेवलप और ट्रेंड करने पर जोर दिया जाता है। इसका नारा है -“अनपढ़ रहने से बेहतर है जन्म न हो और कूविचारित होने से बेहतर है अनपढ़ रहना”।

व्यवहारवाद (प्रैगमैटिज्म) शारीरिक शिक्षा का कार्यक्रम पूरी तरीके से इस दर्शन पर आधारित होता है। “एक्सपीरियंस इस द की आफ लाइफ “यह दर्शन गतिशीलता में विश्वास करता है इसके अनुसार सभी आइडिया, वैल्यू और रियेलिटी चेंज होते हैं। इसका नारा है” एजुकेशन फॉर द सक्सेस”।

अस्तित्ववाद (एक्जिस्टेंसलिज्म) यह दर्शन व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सपोर्ट करता है, इसके अनुसार व्यक्ति के पास कुछ भी करने की चॉइस और वैरायटी आफ इंटरेस्ट होता है ।इसके अनुसार अध्यापक शिक्षण प्रक्रिया में उत्तेजक (स्टीमुलस )का कार्य करता है। इसका नारा है “फ्रीडम फॉर एजुकेशन”।

कुछ महत्वपूर्ण तथ्यशारीरिक शिक्षा का दर्शन व्यवहारवाद, आदर्शवाद और यथार्थवाद पर आधारित है। शारीरिक शिक्षा के दर्शन को उदारवाद कहा जाता है। प्राचीन दार्शनिक प्लेटो नेशारीरिक शिक्षा को युवाओं में ‘चारित्रिक विशिष्ट गुण’ लाने का सबसे सशक्त माध्यम बताया है। शरीर, मन का संबंध सर्वप्रथम प्लाटों ने बताया था परंतु “साउंड माइंड इन अ साउंड बॉडी “का नारा अरस्तू ने दिया था। परंपरागत स्कूल के दर्शन में यथार्थवाद (रियलिज्म) , (व्यवहारवाद)प्रैगमेटिज्म और (प्रकृतिवाद)नेचुरलिज्म शामिल होते हैं। सीक्वेंस आफ ग्रेट ग्रीक फिलॉस्फर सोक्रेटिज (सुकरात)-प्लेटो- एरिस्टोटल (अरस्तु)।
संक्षेप में_
हम कह सकते हैं जीवन, शिक्षा,राजनीति, सामाजिक, मनोविज्ञान आदि विषयों से संबंधित समस्याओं का निदान दर्शनशास्त्र से ही है। शारीरिक शिक्षा के अंतर्गत अध्ययन करने वालों के जैविक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक एवं नैतिक कारकों को विकसित किया जाता है ।इसके अंतर्गत व्यक्ति के जन्मजात गुणों का अध्ययन कर शारीरिक शिक्षा में व्यावहारिक कौशल शिक्षण के साथ-साथ सैद्धांतिक शिक्षा का भी समावेश होता है। कहने का तात्पर्य शारीरिक शिक्षा में दर्शन व्यवहार और सिद्धांत का अति उत्तम मिश्रण है।