“पाचन तंत्र”

"पाचन तंत्र"

“पाचन तंत्र”
भूमिका:- पाचन तंत्र से तात्पर्य भोजन को मुंह द्वारा शरीर में आने के पश्चात उसे पाचक नली में ग्रहण करना, भोजन में आए हुए पदार्थ को आंतों की दीवारों से अवशोषित होने योग्य बनाना अर्थात भोजन का पाचन करना है, उचित भोज्य पदार्थों को पाचक नली के दीवारों से अवशोषित करके रक्त में मिलना तथा अवशोषित भोज्य पदार्थ को मल के रूप में गुदा द्वारा आंतो से बाहर निकालना है। अतः हमारी आज की चर्चा इसी परिप्रेक्ष्य में होने वाली है-

पाचन तंत्र का मुख्य कार्य भोजन को पचाना, उसे उपयोग हो सकने वाले प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट , खनिज लवण, फैट व अन्य पदार्थों में बदलने तथा उन्हें रक्तधारा में प्रवेश करवाना है ताकि शरीर उनका प्रयोग कर सके। पाचन तंत्र का पथ मुंह से शुरू होता है जहां दांत व जीभ सलाइवेरी ग्रंथियों से निकले हुए लार की मदद से भोजन को तोड़ने की प्रक्रिया शुरू करते हैं।
यह चबाया हुआ लार युक्त भोजन ओइसोफेगस से होता हुआ उदर (स्टमक) में पहुंचता है जहां यह पूरी तरह बचाया जाता है तथा घना तरल या आंशिक रूप से अपचने वाला भोजन छोटी व बड़ी आंत में भेजा जाता है। आंत की दीवारों (कैनल आफ इंटेस्टाइन) में चाईम अर्थात आंशिक रूप से बचे हुए भोजन में से रक्त प्रवाह द्वारा भोजन तत्व ग्रहण कर लिए जाते हैं और शेष बेकार (अनयूजेबल) पदार्थ बचता है। यह कोलन द्वारा (जहां रक्तधारा में से ज्यादातर पानी सोखा जाता है) रेक्टम में भेजा जाता है जहां इसे बाहर फेंकने से पहले स्टोर किया जाता है। यहां यह अपशिष्ट पदार्थ गुदा (अनस) द्वारा बाहर फेंक दिया जाता है। इसके रास्ते में शुरू से जब यह पाचन पथ( डाइजेस्टिव ट्रैक)में होता है इसमें पेनक्रियाज, स्प्लीन, लीवर, पित्ताशय द्वारा रासायनिक पदार्थ एंजाइम मिलाते हैं जो पाचन प्रक्रिया में सहायता करते हैं।

चलिए अब हम थोड़ा देखते हैं कि पाचन तंत्र के कौन-कौन से अंग होते हैं-

दांत-: दांतों की भूमिका यह है कि वे भोजन को छोटी-छोटी नरम गुद्दे (पल्पी मास) में बदल देते हैं ताकि उसे निगला जा सके।

जीभ:- जीभ दातों के बीच रखे भोजन को इधर-उधर करती है इसमें सवाद ग्रंथियां होती हैं जिससे कि हमें स्वाद का पता चलता है।

लार ग्रंथियां:- लार ग्रंथियां लार छोड़ती हैं जो पाचन क्रिया शुरू करती है लार ग्रंथियां तीन जोड़े में होती हैं।
एपिग्लोटिस:- जब खाना निगला जाता है तो ढक्कन जैसा अंग जिसे एपिग्लोटिस कहते हैं, टैरेकिया( विंड पाइप)को ढक लेता है। अतः भोजन टैरेकिया के बजाय अमाशय नली में जाता है।यदि भोजन टैरेकिया में चला जाए जैसा कभी कभार होता है तो ऐसे में खासी आने लगेगी।

अमाशय -अली(ओएसोफैगस) यह वह ट्यूब है जो भोजन को अमाशय तक ले जाती है।

अमाशय (स्टमक):- पाचन के दौरान आमाशय ऐसे रसायन छोड़ता है जो भोजन को छोटे-छोटे हिस्सों में तोड़ते हैं ताकि शरीर उन्हें ऊर्जा के लिए उपयोग कर सके।

लीवर:-हमारा लीवर बाइल बनाता है जो एक द्रव है, जो वसा को ज्जब (अब्जॉर्ब) करता है।

अग्नाशय:- अग्नाशय से निकलने वाले रस को पूर्ण पाचक रस कहते हैं। जो कार्बोहाइड्रेट ,प्रोटीन और वसा का पाचन करते हैं।

छोटी आंत:- यह वह स्थान है जहां रासायनिक पाचन तथा जज्ब होने की प्रक्रियाएं होती हैं, छोटी आंत के तीन भाग हैं डयूडेनम, जेजुनम व ईलियन।

बड़ीआंत :- इसमें छोटी आंत से अनपचा तथा जज्ब न किए गए पदार्थ भेजे जाते हैैं। यह भोजन से पानी,नमक, विटामिन और जो बड़ी आंत में बैक्टीरिया रहते हैं उनको जज्ब करती है।
अपेंडिक्स:- जबसे मनुष्य पका हुआ भोजन खाने लगा तभी से पाचन क्रिया में इसका कोई योगदान नहीं है। लेकिन यह पाचन तंत्र का अंग होता है।

रेक्टम:-जब तक मल पदार्थ बाहर नहीं जाते यह रेक्टम में स्टोर रहते हैं।

गुहा:-बड़ी आंत में एकत्र मल पदार्थ गुहा द्वार से बाहर फेंका जाता है।

संक्षेप में-
हम कह सकते हैं कि जब हम कुछ पदार्थ जैसे ब्रेड ,मीट, अनाज व सब्जियां खाते हैं, तो वे इस रूप में नहीं होते हैं कि शरीर उनसे पोषण प्राप्त कर सके। हमारा खाना व पेय पदार्थ ऐसे तत्वों में बदलने चाहिए जिन्हें रक्त में जज्ब किया जा सके तथा पूरे शरीर की कोशिकाओं को पहुंचाया जा सके। पाचन वह प्रक्रिया है जिसमें भोजन को छोटे हिस्से में तोड़ा जाता है ताकि शरीर उनसे पोषण पा सके व ऊर्जा ले सके।