“प्रोटीन”
भूमिका-मानव शरीर को किसी भी कार्य को करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है ।ऊतकों के टूट-फूट की मरम्मत करने के लिए पोषक तत्व की आवश्यकता पड़ती है, जिसको प्रोटीन पूरा करता है इसीलिए प्रोटीन को ‘बॉडी बिल्डिंग’ पोशक तत्व कहा जाता है।
प्रत्येक प्रोटीन का निर्माण अमीनो अम्लों से होता है तथा अमीनो अम्ल प्राय: कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन से मिलकर बना होता है इनके साथ इसमें एक विशेष तत्व नाइट्रोजन भी उपलब्ध होता है। इसमें फास्फेट भी पाया जाता है। नाइट्रोजन की उपस्थिति के कारण ही प्रोटीन को अन्य पोषक तत्वों से श्रेष्ठ माना गया है, यह अन्य पोषक तत्वों में उपस्थित नहीं होता है ।अमीनो अम्ल प्रोटीन के निर्माण की न्यूनतम इकाई होती है ।
प्रकृति में लगभग 20 प्रकार के अमीनो अम्ल पाए जाते हैं। इन्हीं के अलग-अलग क्रम से जुड़ने के कारण कई प्रकार के प्रोटीन बन जाते हैं।अत:हमारी आज की चर्चा इसी परिप्रेक्ष्य में होने वाली है-
जब दो या दो से अधिक अमीनो एसिड आपस में जुड़ते हैं तो यह प्रोटीन का निर्माण करते हैं।अमीनो एसिड एक प्रकार का ऑर्गेनिक कंपोनेंट्स होते हैं। जिसके पास दो क्रियात्मक समूह पाए जाते हैं। अमीनो ग्रुप (NH3) और कार्बोक्सिल ग्रुप (COOH).
अब हमें प्रोटीन के प्रकार के बारे में भी जान लेना चाहिए जो निम्न प्रकार से हैं-
प्रोटीन दो तरह के होते हैं :
क)गैर -जरूरी प्रोटीन
ख) आवश्यक/ जरूरी प्रोटीन।
क) गैर- जरूरी प्रोटीन:-मानव शरीर को अपने प्रोटीनों के सम्मिश्रण के लिए अनुमानतः 20 अमीनो एसिड्स की आवश्यकता होती है। शरीर केवल 13 किस्म के अमीनो एसिड्स तैयार कर सकता है जो कि गैर जरूरी प्रोटीन अथवा अमीनो एसिड्स के नाम से जाने जाते है।
दरअसल यह गैर-जरूरी प्रोटीन भी शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आवश्यक होते हैं, पर हम इन्हें अपनी तरफ से खाए जाने वाले भोजन द्वारा प्राप्त नहीं करते।
ख) आवश्यक प्रोटीन:- ऐसे प्रोटीन या अमीनो एसिड्स की संख्या 9 है। यह सिर्फ हमें लिए गए आहार द्वारा ही प्राप्त होते हैं और शरीर के अंदर नहीं बनते। इसलिए ने आवश्यक प्रोटीन कहा जाता है।
यहां यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यदि किसी भोजन में ‘प्रोटीन’ ‘आवश्यक अमीनो एसिड्स’ की पर्याप्त आपूर्ति को संभव बनाते तो इन्हें पूर्ण प्रोटीन (पशुओं से मिलने वाले-अंडे,
दूध, मांस , मोटा मास एवं दूध से बने पदार्थ)कहा जाता है।
यदि कोई प्रोटीन ‘आवश्यक अमीनो एसिड्स’ की पर्याप्त आपूर्ति नहीं करता तो उसे अधूरा या अपूर्ण प्रोटीन(वनस्पति से मिलने वाले- विभिन्न किस्म की दालें, गेहूं मक्का आदि) कहा जाता है।
नोट-प्रोटीन का सबसे बढ़िया स्रोत सोयाबीन है इसमें लगभग 40% प्रोटीन पाया जाता है।
प्रोटीन की कमी से बच्चों में क्वाशियोर्कर एवं मरास्मस नामक रोग हो जाता है।
और प्रोटीन की अधिकता से शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ जाता है जिससे स्ट्रोक और कैंसर हो सकता है।
सिफारिशें:- 16 से 18 वर्ष के आयु वर्ग के लड़कों लिए जिनका वजन 57 किलो है उन्हें प्रतिदिन 78 ग्राम प्रोटीन लेना चाहिए।
वहीं इसी आयु वर्ग की लड़कियों के लिए जिनका वजन 50 किलो है, उन्हें 63 ग्राम प्रोटीन प्रतिदिन लेना चाहिए।
वहीं फीडिंग कराने वाली महिलाओं के लिए 73 ग्राम प्रोटीन प्रतिदिन लेना चाहिए 6 महीने तक।
संक्षेप में –
हम कह सकते हैं कि प्रोटीन पेशियों, अंगों व ग्रंथियों का मुख्य हिस्सा होते हैं।मूत्र व पित्त को छोड़कर हर जीवित कोशिका और शेष हर शारीरिक तरंल पदार्थ में प्रोटीन होते हैं। बच्चों व किशोरों की वृद्धि एवं विकास में प्रोटीन का बहुत अधिक महत्व है।प्रोटीन की आवश्यकता हार्मोन, एंजाइम एवं हीमोग्लोबिन की तैयारी के लिए पड़ती है।
भूख की हालत में प्रोटीन ताकत के स्रोत के रूप में काम करते हैं हालांकि यह अन्यथा ऊर्जा का कोई स्रोत नहीं है।