“बाल्यावस्था”

"बाल्यावस्था"

“बाल्यावस्था”
भूमिका_ मानव विकास की दूसरी अवस्था बाल्यावस्था है। इस अवस्था को जीवन का अनोखा काल भी कहा गया है।

शैशवावस्था के बाद बालक बाल्यावस्था में प्रवेश करता है। शैशव काल में बालक अपने चारों ओर की परिस्थितियों से अपरिचित होता है।

उसका शरीर और मस्तिष्क दोनों अविकसित अवस्था में होता है।
बाल्यावस्था में प्रवेश करते-करते उसका पर्याप्त विकास हो जाता है और वह अपने वातावरण से परिचित होने लगता है।

इस अवस्था में वह जिस व्यक्तिक और सामाजिक व्यवहार को तथा शिक्षा -संबंधी बातों को सीखना आरंभ करता है वह उसके भावी जीवन की आधारशिला होती है।
अतः हमारी आज की चर्चा इसी परिप्रेक्ष्य में होने वाली है-

बाल्यावस्था को अंग्रेजी में चाइल्डहुड कहते हैं।
शैशवावस्था के बाद बाल्यावस्था का आरंभ होता है ।यह अवस्था, बालक के व्यक्तित्व के निर्माण की होती है ।

बालक में इस अवस्था में विभिन्न आदतों, व्यवहार, रुचि एवं इच्छा के प्रतिरूपों का निर्माण होता है।

बचपन शैशवकाल से 2 वर्ष की आयु से शुरू होकर वयसंधि (किशोरावस्था) तक रहता है,
जब बच्चा यौन रूप से व्यस्क हो जाता है ।
यह अवस्था लड़कियों के लिए 13 वर्ष तथा लड़कों के लिए 14 वर्ष है। बाल्यावस्था का काल 3 से13- 14 वर्ष तक होती है।

इस अवधि को दो भागों में बांटा जाता है -पहला – शुरुआती बचपन (2-5 या 6 वर्ष तक की आयु)

दूसर- बाद का बचपन (5-6से 13 -14 वर्ष तक की आयु)

पहला – शुरुआती बचपन के अंतर्गत निम्न बातें आती हैं-
जैसे-भौतिक तथा शारीरिक वृद्धि:- शैशवकाल की तुलना में वृद्धि थोड़ी धीमी हो जाती है हालांकि पूर्ण विराम भी नहीं लगता।

इस अवधि के दौरान एक ही गति से वृद्धि होती है। इस अवधि में बच्चों की ऊंचाई प्रतिवर्ष 3 इन्च बढ़ती है। ‘बेबी लुक’ अब समाप्त होने लगती है।

हुनर सिखलाई:-हुनर व कलाएं सीखने के लिए शुरुआती बचपन आदर्श आयु है।इस अवधि के दौरान भाषा का विकास तेजी से होता है।

संवेदनाएं तथा कल्पनाएं:-इस अवधि में संवेदनाएं बहुत तीव्र होती है तथा गुस्सा भी बहुत आता है।

खेल की अवस्था:- बच्चा ज्यादा खेलता है तथा ज्यादा बच्चों के संपर्क में आता है । यहीं समाजीकरण की नींव डलती है।

दूसरा- बाद का बचपन:–इसके अंतर्गत निम्नलिखित बातें आती हैं-

जैसे- स्कूल जाने की आयु:-इस कल को स्कूल जाने की उम्र कहते हैं क्योंकि तब तक सभी बच्चे स्कूल में होते हैं ।

यह वह समय है जब धीमी वृद्धि और तेज हो जाती है‌ तथा छोटा बच्चा बोलने के लिए सीखने में तेजी दिखता है।

हुनर सिखलाई:- शुरुआती बचपन में
बालक छोटी व बड़ी पेशियों के समन्वय को सीखते हैं पर बाद के बचपन में यह समन्वय और भी बेहतर हो जाता है।

संकल्पनाएं व कल्पनाएं:- जैसे-जैसे बच्चों को वातावरण के यथार्थ (वास्तविकता) का पता चलता है वे अपने बारे में ज्यादा यथार्थ संकल्पनाएं करते हैं।

वे (बालक) समाज ,वर्ग ,रिश्ते, संख्या के बारे में जान लेते हैं तथा दुनिया के बारे में उनके विचार ज्यादा स्पष्ट हो जाते हैं।

मानसिक क्षमताओं की वृद्धि:- इस काल में बालक पहले जो काम हाथ से करते थे अब उसका स्थान दिमाग ले लेता है।

अभी बिना हाथों /उंगलियों की मदद से जमा ,घटा ,गुणा, भाग आदि कर सकते हैं । वे याद रखने के ढंग सीखते हैं तथा ज्ञान के कोष को बढ़ाते हैं।

शब्दकोश तथा उच्चारण कला में वृद्धि:- शुरुआती बचपन में भाषा का विकास तेज होता है तथा 5 व 10 वर्ष तक की आयु के बीच शब्दकोश तथा उच्चारण कला में बहुत वृद्धि होती है।

संक्षेप में –
हम कह सकते हैं कि
बाल्यावस्था, वास्तव में मानव जीवन का स्वर्णिम समय है, जिसमें उसका सर्वांगीण विकास होता है।

बाल्यावस्था में बालक विकास की संपूर्णता को प्राप्त करती है और एक परिपक्व व्यक्ति के निर्माण की ओर अग्रसर होती है।