“भोजन का आर्थिक, मनोवैज्ञानिक व सामाजिक महत्व”

"भोजन का आर्थिक, मनोवैज्ञानिक व सामाजिक महत्व"

“भोजन का आर्थिक, मनोवैज्ञानिक व सामाजिक महत्व”
भूमिका_शारीरिक रूप से स्वस्थ रखने के अलावा भोजन का महत्व अन्य कई कारणों से भी है।
इसी प्रकार से भोजन के आर्थिक, मनोवैज्ञानिक व सामाजिक क्षेत्र में महत्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
अतः हमारी आज की चर्चा इसी परिप्रेक्ष्य में होने वाली है-

भोजन का आर्थिक महत्व :- किसी भी परिवार के द्वारा लिया जाने वाला भोजन उसकी आर्थिक स्थिति का प्रतिबिंब होता है।उच्च वर्गीय , मध्यमवर्गीय व निम्नवर्गीय परिवारों के द्वारा अलग-अलग तरह का भोजन प्रयोग में लाया जाता है।उच्च- वर्गीय परिवारों में महंगें खाद्य पदार्थ प्रतिदिन के आहार में सम्मिलित किए जाते हैं, जैसे दूध, मेवे ,फल, मिठाइयां आदि मिठाइयां आदि।सामाजिक अवसरों पर यह अधिक से अधिक महंगे खाद पदार्थ से युक्त भोजन का आयोजन करते हैं।इस वर्ग के लोगों में मोटापा व उससे जुड़ी अनेक बीमारियां जैसे हृदय रोग, मधुमेह आदि देखे जाते हैं।
मध्यम वर्ग आर्थिक स्थिति वाले परिवारों में ऋतुविशेष में उपलब्ध, तुलनात्मक रूप से सस्ते पदार्थों का समावेश अधिक होता है। महंगे खाद्य पदार्थों का समावेश ये कभी-कभी विशेष अवसरों पर ही करते हैं। निम्न आर्थिक स्थिति वाले परिवारों का प्रमुख ध्येय किसी भी प्रकार से अपनी भूख को शांत करना होता है। ये कम से कम कीमत वाले भोज्य पदार्थों का चुनाव करते हैं। इस वर्ग में ही पोषण हीनता जनित बीमारियां अधिक देखी जाती हैं। इस तरह से यह स्पष्ट हो जाता है कि व्यक्ति के खान-पान का स्तर व भोजन संबंधी आदतें उसकी आर्थिक स्थिति पर निर्भर करती है।

भोजन का मनोवैज्ञानिक महत्व:- भोजन का मनोवैज्ञानिक महत्व भी है तथा इससे व्यक्ति का मानसिक व संवेगात्मक स्वास्थ्य प्रभावित होता है।अपने प्रांत या देश से बाहर जाकर परिचित भोजन की प्राप्ति व्यक्ति में सुरक्षा की भावना को जन्म देती है ।इसी तरह से अतिथि की पसंद का भोजन परोसकर हम उसके प्रति अपना सम्मान व्यक्त करते हैं ।अरुचिकर भोजन मिलने पर व्यक्ति अपने आप को उपेक्षित महसूस करने लगता है। इस तरह से अनेक अनुभूतियां व संवेदनाओं की अभिव्यक्ति भोजन के द्वारा संभव है। भोज्य पदार्थों का बाह्य रूप जैसे रंग, गंध, आकार आदि का भोजन की ग्राहयता (ग्रहण करने की इच्छा) पर प्रभाव पड़ता है ।कई बार अधिक भूख, अधिक चिंता ,अकेलेपन का एहसास या उपेक्षा का एहसास भी व्यक्ति की भोजन की ग्राहयता को कम कर देता है।अनुकूल वातावरण, सूरुचिपूरण भोजन, आकर्षक भोजन व भोजन की विविधता आदि ऐसे कुछ विशेष कारक है जो कि व्यक्ति को मानसिक रूप से तृप्ति प्रदान कर भोजन की ग्राहयता (ग्रहण करने की इच्छा)को बढ़ाते हैं।

भोजन का सामाजिक महत्व:-
अप्रत्यक्ष रूप से भोजन सामाजिक सौहार्द को बढ़ाने का साधन है। अतः भोजन का हमारे सामाजिक जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इसके द्वारा न केवल व्यक्ति समाज में अपनी प्रतिष्ठा को बनाए रखता है वरन् साथ ही अपना प्रेम, मित्रता ,व सहयोग की भावना को भी प्रदर्शित करता है। सुख व दुःख दोनों ही अवसरों पर भोजन के माध्यम से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया जा सकता है। सभी सामाजिक अवसरों पर चाहे वे पारिवारिक हो, व्यावसायिक हो, राजनैतिक हों ,तीज- त्योहार से संबंधित हो या दान दक्षिणा, पूजा -धर्म आदि से संबंधित हों, भोजन का हमेशा ही महत्वपूर्ण स्थान रहता है ।भोजन के द्वारा आनंद व मेल- मिलाप का वातावरण तैयार करने में मदद मिलती है।यह लोगों को एक दूसरे के करीब करने में सहायक होता है ।किसी भी विशेष अवसर जैसे विवाह ,जन्मदिन, बच्चे का जन्म, उसका नामकरण संस्कार अथवा मुंडन सभी में भोजन ही विशेष आकर्षण होता है ।किसी को शुभ सूचना सुनाने के साथ हम खुशी का इजहार उसे मिठाई भेंट करके करते हैं।

संक्षेप में _
हम कह सकते हैं कि प्रत्येक प्राणी को अपने जैविक कार्यों को पूरा करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऊर्जा ईंधन से प्राप्त होती है ठीक उसी प्रकार हमें ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है। लेकिन यह चौंकाने वाली बात है कि भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में, आंकड़े बताते हैं कि आज भी लाखों लोग खाली (भूखे) पेट सो जाते हैं, सभी को भोजन मिल सके इसलिए सितंबर 2013 में खाद्य सुरक्षा अधिनियम भी लागू किया गया। 16 अक्टूबर को विश्व खाद दिवस मनाया जाता है।