मनुष्य कर्म के अधीन है जैसा करता है वैसा ही भोगता है l
कलयुग की वृद्धि मानवता में अनिश्चितlआदि बढ़ती जा रही है|कलियुग की जैसे जैसे वृद्धि हो रही है, मानवों की प्रज्ञा में दुष्टता नीचता तथा निशाचारता भी प्रबल होती जा रही है! मेरे साथ काम करने वाले सहकर्मी जो मांसाहारी है; वो एक दिन चर्चा के दौरान कहने लगे की हम मांस खा कर फिर स्नान कर के शुद्ध हो जाते है…….!!
मुझे उसकी दुष्टता नीचता तथा निशाचारता प्रज्ञा पर अफसोस हुआ और मैं मन ही मन में यह सोचने को विवश हो गया था कि इसको कहते दुष्टता………!!
संत कबीर जी ने कहा था कि आप यदि राई के दाने के बराबर मांस खा लिया, तत्पश्चात आप गंगा स्नान करले, दान पुण्य करले, आपके लिए नरक तैयार है……!!
भगवान श्रीकृष्ण जी गीता में कहते है कि जो आसुर प्रवृति के लोग है, वो लोग तथा उनकी भक्ति मुझे स्वीकार्य नहीं है……!!
कोई भी धर्म मनुष्य को यह अधिकार नहीं देता है की निर्दोष जीवों को मारकर उसका मांस ग्रहण करे; क्योंकि जीवात्मा परमपिता परमेश्वर का अंश है जो सभी प्राणियों में प्रकाशमान दिव्य ज्योति पुंज में विराजमान है……..!!
आपने यदि किसी जीव की हत्या कर दी मतलब आपने परमपिता परमेश्वर की हत्या कर दी; तब आपकी सद्गति कैसे संभव है……!!
जीवन में अचानक घटना घटित हो जाती है और किसी का हाथ कट जाता है, किसी की कार में आग लग जाती है और वो सब अंदर बंद हो कर जल जाते है, किसी के घर में आग लग जाती है और वो सब झुलस कर मर जाते है; जरा गौर कीजिए ये वो ही पापी लोग है जिन्होंने जीवों को जिस अवस्था में मारा था आज स्वयं उसी रूबरू अवस्था में मर रहे है……….!!
स्मरण रहे कर्म कर्त्ता को तीन लोकों में नहीं छोड़ता है; जो मनुष्य जिस तरह की दुष्टता नीचता, दुष्कर्म करता है; उचित अवसर आने पर कर्म का चाबुक ऐसा चलता है कि जातक को संभलने का अवसर तक नसीब नहीं होता है……..!!AVM TIMES