“रक्त परिसंचरण”

"रक्त परिसंचरण"

“रक्त परिसंचरण”
(Blood Circulation)
भूमिका – मानव शरीर का हृदय बंद मुट्ठी के आकार का होता है। जिसका आभार 250 से 300 ग्राम होता है। हृदय वक्ष हड्डी स्टेर्नम (Sternum)के पीछे स्थित होता है। जिसका 2/3भाग वक्ष हड्डी स्टेर्नम बाई तरफ वह 1/3 भाग दाएं तरफ होता है। हमारे शरीर में मुख्यतः तीन प्रकार से रक्त परिसंचरण होता है, जिसकी वजह से रक्त पूरे शरीर में संचरण करता है।(a)
सिस्टेमिक परिसंचरण / दैहिक परिसंचरण(Systemic circulation ) (b)पलमोनरी परिसंचरण / फुफ्फुसीय परिसंचरण(Pulmonary Circulation)(c) पोर्टल परिसंचरण / प्रतिहारी परिसंचरण
(Portal Circulation )
a- सिस्टेमिक / दैहिक परिसंचरण – इस परिसंचरण को ग्रेटर सरकुलेशन भी कहते हैं, क्योंकि यह संपूर्ण शरीर के विभिन्न अंगों तक रक्त को संचरित करता है। शुद्ध रक्त (ऑक्सीजन युक्त )का हृदय के बायें निलय के ओटिवाल्व के माध्यम से महाधमनी से होते हुए अन्य धमनियों के माध्यम से शरीर के विभिन्न भागों की कोशिकाओं तक पहुंचता है जहां ऊर्जा उत्पादन के पश्चात रक्त अशुद्ध (कार्बन डाइऑक्साइड युक्त) हो जाता है फिर अशुद्ध रक्त शिराओं के माध्यम से हृदय के दाएं आलिंद में पहुंचता है। इस परिसंचरण को सिस्टेमिक परिसंचरण कहते हैं।
b- पलमोनरी /फुफ्फुसीय परिसंचरण (pulmonary Circulation) – इस परिसंचरण में हृदय के दायें निलय से अशुद्ध रक्त (कार्बन डाइऑक्साइड) पलमोनरी वाल्व के रास्ते पलमोनरी /फुफ्फुसीय धमनियों द्वारा दोनों फेफड़ों तक पहुंचता है जहां से अशुद्ध रक्त वायु कोष अल्विओली ही तक पहुंचता है। और वायु कोष में रक्त शुद्ध (ऑक्सीजन युक्त) होता है यह शुद्ध रक्त हृदय के बायें आलिंद तक पलमोनरी / फुफ्फुसीय शिराओं द्वारा पहुंचाया जाता है फिर शुद्ध रक्त हृदय के बायें निलय में पहुंचता है। इस रक्त के परिसंरक्षण को पलमोनरी/ फुफ्फुसीय परिसंचरण करते हैं।
C- पोर्टल/ प्रतिहारी परिसंचरण (Portal Circulation)- यह परिसंचरण आमाशय (Stomach)आते(Intestine)अग्नाशय (pancreas) प्लीहा (Spleen )तथा यकृत (Liver)से संबंधित होता हैl यह सिस्टेमिक परिसंचरण का ही एक भाग होता है। पोर्टल शिरा की शाखाओं से रक्त अमाशय, आतों,अग्न्याशय, एवं प्लीहा से स्रावित होते हुए पोर्टल शिरा के माध्यम से यकृत में पहुंचता है।यकृत में यह पोर्टल शिरा कई कोशिकाओं में बट जाती है ।महाधमनी से जुड़ी हुई धमनी,यकृति धमनी (Hepatic Artry) शुद्ध रक्त लेकर यकृत में आकर कई कोशिकाओं में बट जाती है और वह पोर्टल शिरा से विभाजित कोशिकाओं से मिल जाती है। यह दोनों प्रकार की कोशिकाएं एकत्रित होकर यकृत शिरा बनाती है ।जो अशुद्ध रक्त (कार्बन डाइऑक्साइड युक्त) लेकर निम्न महाशिरा के रास्ते दांया आलिंद में पहुंचती है।

रक्त परिसंचरण तंत्र की क्रिया तथा रचना का विवरण:- हृदय पंपिंग स्टेशन का कार्य करता है, जो शरीर के विभिन्न भागों से आए हुए अशुद्ध रक्त को फेफड़े द्वारा शुद्ध करके शरीर के विभिन्न अंगों तक पुन: भेजता है हृदय में दो पंप होते हैं। हृदय के चार चेंबर/कक्ष होते हैं ऊपर के दोनों कक्षो चैंबरों को दाएं और बाय आलिंद (राइट एंड लेफ्ट ओरिकल) कहते हैं। और नीचे के दोनों कक्षो/ चैंबरों को दाया /बाया (लेफ्ट एंड राइट) निलय कहते हैं। हृदय के दाएं तरफ अशुद्ध रक्त और बाएं तरफ शुद्ध रक्त रहता है।
शरीर के विभिन्न भागों से आया हुआ अशुद्ध रक्त दायें आलिंद में प्रवेश करता है।जिसमें शरीर के निकले भाग से अशुद्ध रक्त
इनफीरियर वेना कावा से तथा शरीर के ऊपर भाग से सुपीरियर वेना कावा के रास्ते हृदय के दायें आलिंद में प्रवेश करता है। दायें आलिंद के संकुचन होने पर रक्त तीन कपाट वाल्व के रास्ते दाएं निलय में प्रवेश करता है दाएं निलय के संकुचन होने पर अशुद्ध रक्त पलमोनरी वाल्ब
के रास्ते फुफ्फुसीय धमनी से होता हुआ दाएं बायें फेफड़ों में प्रवेश करता है। फुफ्फुसीय धमनी संख्या में दो होती है शरीर की एकमात्र धमनी जो अशुद्ध रक्त लेकर जाती है। शरीर क्रिया विज्ञान के विशेषज्ञों के आधार पर जो रक्तवाहिनियां
हृदय की तरफ आती है उन्हें शिरायें तथा जो हृदय से बाहर जाती है उन्हें धमनी कहा जाता है। फेफड़ों में अशुद्ध रक्त शुद्ध होकर फुफ्फुशिय शिराओ द्वारा बाय आलिंद में पहुंचता है ।बायें आलिद के संकुचन होने पर शुद्ध रक्त द्विकपाट बल्ब के रास्ते बायें नीलय में पहुंचता है। इसे हम मित्रटल वाल्व भी कहते हैं ।बाय नेट के संकुचन होने पर शुद्ध रक्त
ओटिक वाल्व के रास्ते महाधमनी से होता हुआ शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है यहां पर ऊर्जा बनने का कार्य कोशिका में होता है जिसके कारण रक्त पुनः अशुद्ध होता है शरीर से अशुद्ध रक्त शिराओं के माध्यम से हृदय की तरफ आता है और यह संचरण जीवित रहने तक चलता रहता है ।इसे ही रक्त परिसंचरण करते हैं।
हृदय से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:-
हृदय में चार वाल्ब होते हैं तरिकपाट वाल्व, द्विकपाट बाल्ब पलमोनरी वाल्व और ऑरोर्टिक वाल्व
हृदय में दो पंप होते हैं ए.वी.नोड और एस ए नोड
हृदय में चार चैंबर राइट एंड लेफ्ट ओरिकल, राइट एंड लेफ्ट वेंट्रीकल होते हैं।