“विद्यालय

"विद्यालय पर्यवेक्षण"

पर्यवेक्षण”

भूमिका विद्यालय पर्यवेक्षण शैक्षिक पर्यवेक्षण का ही एक भाग है।इसके अंतर्गत विद्यालय के अध्यापन अधिगम के संस्थितियों के पर्यवेक्षण के साथ-साथ विद्यालय की अन्य प्रवृत्तियों जैसे खेलकूद , सांस्कृतिक कार्यकलाप विद्यालय कार्यालय भवन आदि विद्यालय से संबंधित सभी भौतिक एवं मानवीय संसाधनों का पर्यवेक्षण सम्मिलित है। अतःआज की हमारी चर्चा इसी सन्दर्भ में होने वाली है- पर्यवेक्षण शब्द की उत्पत्ति अंग्रेजी भाषा के शब्द सुपरविजन से हुई है । जिसका अर्थ होता है कि वह ‘उच्च दृष्टि’ जो विद्यालय विकास को गति दे सके ।उसके कार्यक्रम वर्तमान व भावी अपेक्षाओं के अनुरूप हो। जिनमें विद्यालय संगठन के सभी घटकों का समुचित विकास हो सके । शिक्षण प्रक्रिया के मुख्य तीन अंग होते हैंशिक्षक, विद्यार्थी अौर शिक्षण सामग्री। पर्यवेक्षण के अंतर्गत इस तथ्य पर जरूर ध्यान देना चाहिए जिससे शिक्षक पूर्ण योग्यता तथा प्रभाव के साथ शिक्षण सामग्री को भी समझ सके व छात्रों को पढ़ा सके। इस प्रकार पर्यवेक्षण का लक्ष्य शिक्षण को योग्य तथा प्रभावशाली बनाना है। पर्यवेक्षण के मुख्यत: दो क्षेत्र होते हैं_ शिक्षक के शिक्षण को देखना, गलतियां देखकर अच्छाइयों को उभारना।

दूसरी ओर बालक को देखना कि उसके स्तर के अनुरूप पाठ्यक्रम तथा पाठ्य सामग्री उपलब्ध है अथवा नहीं ताकि छात्रों की सृजन शक्ति, तर्कशक्ति ,मानसिक शक्ति, तथा शारीरिक शक्ति आदि का समुचित विकास हो सके।


इस संदर्भ में हमें विद्यालय पर्यवेक्षण के उद्देश्य को जानना जरूरी हो जाता है जो इस प्रकार हैवृहत समाज की विद्यालय पर्यवेक्षण अपेक्षाओं के अनुरोध विद्यालय के उद्देश्य से शिक्षकों को परिचित कराना। विद्यालय संसाधनों का प्रभावी अध्यापन व अधिगम प्रवृत्तियों में लगाव ।शिक्षकों एवं छात्रों की समस्याओं से निकट का परिचय प्राप्त करना ।छात्रों की समस्याओं (आधुनिक ,बाल- विकास, समायोजन आदि )के निदान व उपकरण के लिए कदम उठाना शिक्षकों की समस्याओं का सहानुभूतिपूर्वक समाधान खोजना तथा शैक्षिक विकास में योग देना। शिक्षकों की विशेष योग्यताओं के विकास के अवसर प्रदान करना। मानवीय संबंधों में परस्पर विश्वास उत्पन्न करना व सहयोग को बढ़ावा देना।भावी अधिगम संबंधी चुनौतियां के लिए छात्रों को तैयार करना।शिक्षकों को व्यवसायिक विकास के अवसर प्रदान करना। विद्यालय विकास की योजनाओं में तथा कार्यक्रमों में शिक्षकों का नियमित सहयोग प्राप्त करना। नवीन शिक्षण कौशलों एवं विधियों से परिचित कराना तथा उनमें अनुस्थापन करना ।सेवारत भारत प्रशिक्षण कार्यक्रमों का नियमित आयोजन करना। पर्यवेक्षण की मार्गदर्शन संबंधी भूमिका के अंतर्गत आने वाली बातें निम्न है- शिक्षकों की व्यक्तिगत व्यवसायिक कठिनाइयों के आधार पर उनके समाधान में योग देना, प्रत्येक शिक्षक की शैक्षिक त्रुटियों एवं विशेषताओं के आधार पर त्रुटियों के परिमार्जन एवं विशेषताओं के उत्तरोत्तर विकास के लिए मार्गदर्शन देना एवं निरंतर योगदान देता है।एन. ई .ए .के एक सर्वेक्षण के अनुसार “पर्यवेक्षण शिक्षकों एवं शिक्षकों के सामूहिक प्रोजेक्ट, नवीन विद्याएं ,विद्यार्थियों द्वारा पैदा की गई समस्याओं के हल करने में भी योग देता है। विशेषताएं-बर्टर ,बार तथा बुकर ने इसकी निम्नलिखित विशेषताएं बताई हैंयह एक विशेष तकनीकी सेवा है जिसका मुख्य उद्देश्य उन सभी तथ्यों का सामूहिक रूप से अध्ययन करना है जिससे बालक की प्रगति तथा विकास हो सके ।

विद्यालय पर्यवेक्षण शिक्षा के सामान्य उद्देश्यों के अनुरूप निर्देशन देता है।

विद्यालय पर्यवेक्षण अध्ययन प्रक्रिया को प्रभावी बनाने में योगदान देता है।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि उपर्युक्त विवेचना से यह स्पष्ट है कि पर्यवेक्षण समग्र अध्यापन व अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करता है। इसमें छात्र ,शिक्षक व प्रशासक (पर्यवेक्षक )सभी का विकास सन्निहित रहता है।
पर्यवेक्षण शिक्षा प्रशासन का अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है जो समग्र अध्यापन व अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करता है यही कारण है कि राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (1964- 66 )ने इसे रीड की हड्डी स्वीकार किया है।इसका आशय यह है कि यदि पर्यवेक्षण पर ध्यान दिया जाए तो समग्र शिक्षण परिस्थितियों में सुधार हो सकता है तथा इसके विपरीत यदि ध्यान नहीं दिया गया तो समग्र शैक्षिक ढांचा लड़खड़ा सकता है, क्योंकि पर्यवेक्षक( प्रशासक)के स्तर तक सभी इस प्रक्रिया से प्रभावित होते हैं।