“व्यवहार”
भूमिका_ व्यवहार ( बिहेवियर) सतत् प्रक्रिया है, जो जीवनपर्यंत अविराम गति से चलता रहता है। व्यवहार ही व्यक्ति के जीवन का आधार है। प्रतिक्षण हम व्यवहार का प्रदर्शन करते हैं।खाते- पीते, सोते -जागते,हंसते -बोलते,उठते- बैठते, घूमते -फिरते समय व्यक्ति व्यवहार का प्रदर्शन आवश्यक रूप से करता है। यह व्यक्ति का व्यवहार ही होता है, जो उसे साधारण से असाधारण तथा असाधारण से साधारण बना देता है। व्यवहार को कभी हम स्पष्ट देख व अनुभव कर सकते हैं तो कभी नहीं। अतः हमारी आज की चर्चा इसी परिप्रेक्ष्य में होने वाली है-
मनोविज्ञान मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन करता है, मनोविज्ञान मनुष्य के सामान्य विशिष्ट एवं असामान्य व्यवहार के कारणों की खोज करता है और उसे (मनुष्य) समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाने के लिए उसके व्यवहार को परिष्कृत एवं परिमार्जित करने की जरूरत होती है जिसे शिक्षा द्वारा पूरा किया जाता है।
आमतौर पर लोग शारीरिक क्रिया-कलापों को व्यक्ति का व्यवहार मानते हैं।लेकिन व्यवहार के संबंध में लोगों की यह अवधारणा व्यवहार के वास्तविक अर्थ को प्रकट नहीं करती। क्रिया-कलाप तो यंत्रों,मशीनों द्वारा भी संपन्न किया जाता है। लेकिन यंत्रों के क्रिया-कलाप को हम व्यवहार की श्रेणी में नहीं रखते और यदि हम व्यक्ति के व्यवहार को उसकी शारीरिक क्रिया-कलापों तक संकुचित कर देंगे तो हमें उसे भी यंत्रों की श्रेणी में रखना होगा। लेकिन समस्या यह है कि व्यक्ति को यंत्रों की श्रेणी में रखा ही नहीं जा सकता क्योंकि यंत्र निर्जीव होते हैं और उनके क्रियाकलाप पर व्यक्ति का पूर्ण नियंत्रण होता है जबकि व्यक्ति सजीव होते हैं और उनके क्रिया-कलाप मानसिक एवं बौद्धिक क्षमताओं से प्रभावित एवं प्रेरित होते हैं।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि व्यक्ति के व्यवहार को उसके शारीरिक क्रिया-कलापों तक संकुचित नहीं किया जा सकता।क्योंकि उसके व्यवहार में सामाजिक, भौतिक ,बौद्धिक एवं मानसिक परिस्थितियां शामिल होती हैं।
वास्तव में व्यक्ति अपनी चेतन व अवचेतन अवस्था में जो कुछ (बौद्धिक, नैतिक, सामाजिक, मानसिक ,शारीरिक) क्रिया-कलाप करता है वही व्यवहार कहलाता है।
वुड वर्थ और मारक्विस के अनुसार,”मनोविज्ञान व्यक्ति के जीवन पर्यंत के क्रिया-कलापों का अध्ययन करता है। यह क्रिया-कलाप उसके जन्म से कुछ समय पूर्व होते हैं और उसके शैशव, बचपन तथा किशोरावस्था से होती हुई प्रौढ़ावस्था से भी आगे ह्रासात्मक वर्षों तक फैली रहती है।”
अच्छा ! यहां हम बताते चलते हैं कि मनुष्य के व्यवहार को दो प्रकार में रखा जा सकता है-
पहला – जन्मजात अथवा प्राकृतिक व्यवहार:- यें वे व्यवहार होते हैं जिनके अधिगम के लिए किसी अभ्यास एवं प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। यह मनुष्य की सहज अथवा प्राकृतिक प्रवृत्तियों से प्रेरित होते हैं।
दूसरा-शिक्षित व्यवहार:- ये ऐसे व्यवहार होते हैं, जिनके अधिगम के लिए अभ्यास एवं प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। शिक्षित व्यवहार को अर्जित करने के लिए विभिन्न साधनों (उपकरणों) से अधिगम करना पड़ता है। इसी व्यवहार के कारण मनुष्य (मानव जाति )का समाज में विशेष स्थान बनता है। मनुष्य के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास भी उसके अपने व्यवहार पर ही निर्भर करता है। इस प्रकार व्यवहार मनुष्य में रचनात्मक शक्तियां विकसित करता है और वह समाज में उसकी प्रतिष्ठा स्थापित करता है।
वास्तव में व्यक्ति का दिखने वाला (शारीरिक मुद्रा एवं क्रिया-कलाप) व्यवहार (आचरण) उसके संपूर्ण व्यवहार का दर्पण नहीं हो सकता। वह तो केवल एक अंश मात्र है। व्यवहार की उत्पत्ति तो मन से होती है और मन की गहराइयों तक पहुंचना प्राय: असंभव है और इसका प्रमुख कारण यह है कि “व्यक्ति का व्यवहार अनेक बार उसके सचेत मन से प्रभावित होता है, अनेक बार उसके उपचेतन मन से प्रेरित होता है, तो अनेक बार उसका उत्पत्ति स्थल उसका अवचेतन होता है।
चेतन मन से तो उद्भव होने वाले व्यवहार शारीरिक क्रिया -कलापों द्वारा स्पष्ट दृष्टिगोचर हो जाते हैं लेकिन उप -चेतन, अवचेतन मन की सतह पर होने वाले व्यवहार स्पष्ट दृष्टिगोचर नहीं होते हैं।
अतः व्यवहार के दो रूप हैं एक दृश्यमान व्यवहार और दूसरा अदृश्यमान व्यवहार।
जानने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि ‘अदृश्यमान व्यवहार’ (उपचेतन तथा अवचेतन) का विश्लेषण किये बिना व्यक्ति के व्यवहार में वांछित परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
संक्षेप में –
हम कह सकते हैं कि व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास व पतन उसके व्यवहार पर निर्भर करता है। व्यक्ति अपने व्यवहार के माध्यम से समाज के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है
और समाज विकास के मार्ग में समस्याएं भी उत्पन्न कर सकता है।
व्यक्ति कभी-कभी अपने व्यवहार में इतनी सहजता व सरलता ले आता है कि उसे आसानी से समझा जा सकता है लेकिन कभी उसका व्यवहार इतना अस्पष्ट होता है जिसे समझना अत्यंत कठिन होता है या समझा ही नहीं जा सकता। इस प्रकार मानव जीवन व्यवहार के चारों ओर घूमता है।