शारीरिक शिक्षा ,शिक्षा का ही एक महत्वपूर्ण अंग है। शारीरिक शिक्षा का शाब्दिक अर्थ है शरीर की शिक्षा परंतु भाव केवल शरीर तक ही सीमित नहीं है बल्कि काफी विस्तृत है कभी इसको शारीरिक प्रशिक्षण कहा गया है तो कभी शारीरिक संस्कृति, एक आम व्यक्ति शारीरिक शिक्षा को शारीरिक क्रिया ही मानता है। शारीरिक शिक्षा को केवल शारीरिक क्रिया या शारीरिक क्रियोओं का समूह मानना शारीरिक शिक्षा के साथ अन्याय करना है। क्योंकि शिक्षा शब्द का उपयोग शरीर के साथ किया गया है वहाँ
शारीरिक शिक्षा से अभिप्राय उस शिक्षा से है जिसका संबंध है शारीरिक क्रियाओं व शरीर से होता है जिसके माध्यम से किसी व्यक्ति विशेष का विकास संभव होता है।
इस शिक्षा का क्षेत्र काफी व्यापक है ,
क्योंकि शारीरिक शिक्षा में शिक्षा शब्द का प्रयोग किया गया है।
इस शिक्षा के अंतर्गत स्वास्थ्य शिक्षा , व्यावसायिक शिक्षा, कार्य क्षमता का परीक्षण मापन एवं मूल्यांकन ,खेल पत्रकारिता, खेल शरीर क्रिया विज्ञान ,शरीर रचना विज्ञान ,खेल मनोविज्ञान, खेल समाजशास्त्र, और
जैव यांत्रिकी विज्ञान आदि कई अन्य विषयों को शामिल किया गया है।
शारीरिक शिक्षा का वर्तमान लक्ष्य निर्धारित करने में शारीरिक शिक्षा शास्त्रियों को न जाने कितनी शताब्दियाँ लगी हैं। आरंभ में जब शारीरिक शिक्षा सामान्य शिक्षा का केवल एक अलंकरण मानी जाती थी, तो इसका लक्ष्य परंपरागत व्यायाम -प्रक्रियाओं के माध्यम से शरीर को अनुशासित करना होता था। सैनिक लोग व्यायाम प्रक्रिया के द्वारा शरीर को सुदृढ़ तथा सशक्त बनाते हैं, जबकि सामान्य व्यक्ति व्यायाम का उपयोग अपनी पाचन प्रक्रिया को उत्कृष्ट बनाने के उद्देश्य करता है। पिछले कई वर्षों से धीरे-धीरे शारीरिक शिक्षा एक सर्वाग्रही विषय के रूप में उभर कर हमारे सामने आई है। शारीरिक अस्तित्व से ऊपर अब शारीरिक शिक्षा बौद्धिक तथा सामाजिक परिवर्धन की ओर आकर्षित हुई है। शारीरिक प्रक्रिया के माध्यम से शारीरिक शिक्षा ने उन विशेष तत्वों के विकास पर ध्यान देना आरंभ किया है जो किसी अन्य साधन से विकसित नहीं हो सकते।
शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य के अंतर्गत व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है शारीरिक शिक्षा में शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक व सामाजिक घोड़े का भी विकास होता है शारीरिक शिक्षा का माध्यम सारी प्रक्रिया ही है श्री शारीरिक भीम से आश्रय अभिप्राय बहु पेशी क्रियो से है जींस जींस शरीर के समस्त अवयवों का अवयवों का उचित विकास होता है शारीरिक शिक्षा सामान्य शिक्षा का ही एक अभिन्न अंग है आज की शारीरिक शिक्षा सुनियोजित तथा वैज्ञानिक सिद्धांतों पर ही आधारित है जिम जिम जिम जिम प्रक्रियाओं का चयन व्यक्ति के विकास के लिए ही किया जाता है अतः हम कह सकते हैं कि शारीरिक शिक्षा एक विधि है जो शारीरिक प्रक्रियाओं का सहारा लेकर उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करती है व शारीरिक गतिविधि के माध्यम से व्यक्तियों के व्यवहार तथा अभिवृत्ति में परिवर्तन लाने का प्रयत्न करती है यह केवल क्रिया प्रधान कार्य नहीं है परंतु एक साधन भी है ।
संक्षेप में शारीरिक शिक्षा शरीर एवं मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए जो सिख, ज्ञान एवं क्रियाएं कराई जाती हैं उसे ही शारीरिक शिक्षा कहते हैं शारीरिक शिक्षा व्यक्ति के शरीर एवं मस्तिष्क को स्वस्थ एवं मजबूत बनाने के साथ-साथ उसके सामाजिक मानसिक एवं नैतिक मूल्यों के विकास के लिए भी आवश्यक है।
इसमें खेल क्रियाओं द्वारा खेल स्फूर्ति एवं आनंद और ऊर्जा प्राप्त होती है। इससे जीतने या हारने की स्थिति में अपने को अनुशासित रखने का गुण विकसित होता है। इस शिक्षा द्वारा सहयोग की भावना, विचारशीलता ,दृढ़ता एवं संयम आदि नैतिक मूल्यों का विकास होता है। समय का सदुपयोग करने की भी प्रेरणा शारीरिक शिक्षा द्वारा मिलती है।
