“संधि”
भूमिका_जोड़ अथवा संधि, कंकाल की किसी दो या दो से अधिक अस्थियों के जोड़ को संधि कहते हैं ।संधियों के अध्ययन को आर्थ्रोलॉजी कहते हैं जोड़ से तात्पर्य दो हड्डियों के मिलने से है यह दो हड्डियां फाइबर ,कार्टिलेज आदि के माध्यम से जुड़ी रहती है। अतः हमारी आज की चर्चा इसी परिप्रेक्ष्य में होने वाली है-
मानव शरीर में जिस स्थान पर दो या दो से अधिक अस्थियां संगम करती हैं उसे संधि (जॉइंट )कहते हैं। शरीर में जो अस्थियों का ढांचा है ,वह परस्पर जुड़ा रहता है।यही कारण है कि हमारे शरीर में अनेक स्थानों पर संधियां पाई जाती हैं। इन संधियों द्वारा शरीर को गति प्राप्त होती है। प्रत्येक अस्थि ऊतकों तथा लिगामेंट द्वारा बंधी रहती है। इनसे ही अस्थि ठीक जगह पर बनी रहती है तथा क्रियाशील रहती है। इन्हीं के कारण मानव सुगमता से गति कर सकते हैं। अच्छा! यदि संधि व्यवस्था न होती तो शरीर बांस की तरह सीधा ही बना रहता।संधियों की रक्षा हेतु इस पर मांसपेशियों का निर्माण होता है। मांस की झिल्लियों के कारण संधियों पर परस्पर रगड़ नहीं लगती है और ना ही घिसने पाती है। यह झिल्लियां सायनोवियल मेंबरेन के नाम से जानी जाती हैं। इन संधियों की विशेषता यह है कि जिस अंग से जिस प्रकार का काम लिया जाता है वहां उसी विशेष प्रकार की संधि बनी होती है।
मानव शरीर में संधियो को उनकी गति व उनकी संरचना के आधार पर तीन प्रकार में वर्गीकृत किया गया है जो निम्नलिखित है:-
पहला: अचल संधि (गति के आधार पर) फाइब्रस संधि (संरचना के आधार पर)।
दूसरा: अर्धचल संधि (गति के आधार पर ) कार्टिलेजिनस संधि (संरचना के आधार पर)।
तीसरा: चल संधि(गति के आधार पर) सायनोवियल संधि (संरचना के आधार पर)
उपरोक्त तीनों संधियों को उनके प्रकार व उदाहरण सहित नीचे समझाया गया है:-
अचल संधि इस संधि को फिक्स्ड फाइब्रस, साइनरथोरोसिसआदि नाम से भी जाना जाता है यह संधि फाइबर्स के माध्यम से जुड़ी रहती है जो किसी भी प्रकार की गति नहीं करती। उदाहरण के लिए_
सूचर: (छोटे फाइबर्स या तंतु) खोपड़ी की पूरी 22 हड्डियां इन्हीं के द्वारा जुड़ी रहती हैं।
सिंडीमोसिस:(लंबे फाइबर या तंतु) इसके अंतर्गत आने वाला इनफीरियर टीबियो फिब्युलर जॉइंट (संधि) हैं।
गमफोसिस: यह एक ग्रीक शब्द है जिसका अर्थ बोल्ट होता है यह दांतों के कोटर या सॉकेट में पाया जाता है। पेग एंड सॉकेट जोड़ भी कहा जाता है।
सैक्रोइलियक जोड़: यह जोड़ कूल्हे में स्थित रहता है।
अर्धचल संधि:-इस संधि को कार्टिलेजिनस , एमफिआरथोरोसिस आदि भी कहा जाता है। इसमें दो हड्डियों के मध्य कार्टिलेज रहते हैं। इसीलिए इसे कटीलेजीनस जोड़ कहा जाता है।
इस संधि में दो प्रकार के कार्टिलेज पाए जाते हैं-
पहला-
सीनकॉड्रोसिस: -इस प्रकार के जोड़ों के मध्य हायालाइन कार्टिलेज पाए जाते हैं। जो नीले रंग के होते हैं जैसे-ग्रोथ प्लेट, रिब्स केज+स्टेर्नम
दूसरा-सिंफेसिस:-इस प्रकार के जोड़ों के मध्य फाइबर्स कार्टिलेज पाए जाते हैं जैसे-इंटरवर्टिबल जोड़ ,प्यूबिक सिंफेसिस।
चल संधि: इस जोड़ को फ्रिली मूवेबल जॉइंट सायनोवियल ज्वाइंट और डायरथ्रोसिस जॉइंट भी कहते हैं।
मानव शरीर में जो जोड़ गति करने में सहायक होते हैं उन्हें हम चल संधि कहते हैं और यह जोड़ तीनों तलों से संबंधित तल में गति करते हैं ।जोड़ों की तलों में गति, बनावट व स्थिति के आधार पर इन्हें 6 प्रकार में वर्गीकृत किया गया है जो निम्नलिखित है-
ग्लाइडिंग ज्वाइंट: इसे फिसलने वाले जोड़ कहते हैं। जैसे इंटर- कॉरपस जॉइंट व टार्सस जॉइंट
बाल और साकेट जॉइंट: इस प्रकार का सभी दिशाओं में गति करता है। शोल्डर ज्वाइंट, हिप जॉइंट।
हिंज जॉइंट: इस प्रकार की संधि कि केवल एक तल में गति संभव होती है जैसा कि कब्जो के जोड़ों में होता है (दरवाजा)।जैसे नी ज्वाइंट और एल्बो ज्वाइंट।
कॉन्डिलाइड जॉइंट: यह संधि भी हिंज जॉइंट की तरह है बस अंतर यह है कि यह दो तलों में गति करती है। जैसे रिस्ट ज्वाइंट।
पीवट ज्वाइंट: यह वह जोड़ होता है जिसमें सिर्फ रोटेशन मूवमेंट होता है दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि इस जोड़ में एक हड्डी का सिरा दूसरी हड्डी के नुकीले सिरे पर घूमता है।
जैसे सिर की गति जिसमें सिर गर्दन पर घूमता है।
सैडल जॉइंट: इसे परस्पर आदान-प्रदान वाली संधि भी कहते हैं इसका उदाहरण है ट्रेपीजियम तथा प्रथम मेटाकार्पल अस्थि की संधि, जिसमें अंगूठा प्रत्येक उंगली के सामने जा सकता है।
महत्वपूर्ण तथ्य_
मानव शरीर के जोड़ों द्वारा जो गति की जाती है उन्हें चार प्रकार में बांटा गया है 1-ग्लाइडिंग मूवमेंट :जैसे कॉरपस तथा टारसस जॉइंट
2-एंगुलर मूवमेंट :फ्लेक्शन तथा एक्सटेंशन यह गति सेजिटल प्लेन में होता है और
एबडक्शन तथा एडक्शन यह गति फ्रंटल प्लेन में होती है।
3-रोटेटरी मूवमेंट्स :-जैसे इनवर्ट रोटेशन ,आउटवर्ड रोटेशन इसके चार भाग हैं इन -वर्जन, एवर्जन, सुपाइनेशन, प्रोनेशन
4-सरकमडक्शन मूवमेंट-इस प्रकार के जोड़ों की गति में एंगुलर तथा रोटेटरी दोनों ही गतियां एक साथ होती हैं मतलब यह रोटेटरी और एंगुलर मुमेंट का मिश्रण है।
संक्षेप में –
हम कह सकते हैं बिना अस्थियों के हमारा शरीर मांस का लोथड़ा (ढेर) होता,अस्थियों ने इसे कड़ापन (हार्डनेस )दिया जबकि संधियों ने इसे (शरीर को)गतिशील बनाया और बिना गति के हमारा जीवन संभव नहीं है।