“संवेग”

"संवेग"

“संवेग”
भूमिका_ संवेग शब्द अंग्रेजी के इमोशन शब्द का हिंदी रूपांतरण है। शब्द वयुत्पत्ति के अनुसार इमोशन शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द इमूवर से मानी जाती है जो उत्तेजित करने, हलचल मचाने,उथल-पुथल या क्रांति उत्पन्न करने जैसे अर्थो में प्रयुक्त होता है।क्रो एंड क्रो ने संवेग को परिभाषित करते हुए कहा है कि-
“संवेग वह भावनात्मक अनुभूति है जो व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक उत्तेजनापूर्ण अवस्था तथा सामान्यीकृत आंतरिक समायोजन के साथ जुड़ी होती है और जिसकी अभिव्यक्ति व्यक्ति द्वारा प्रदर्शित बाह्य व्यवहार द्वारा होती है”। अतः हमारी आज की चर्चा इसी परिप्रेक्ष्य में होने वाली है-

संवेग वस्तुतः ऐसी प्रक्रिया है, जिसे व्यक्ति उद्दीपक( स्टीम्युलस) द्वारा महसूस करता है। संवेदनात्मक अनुभव, संवेदन चेतन उत्पन्न करने की सबसे अत्यंत प्रारंभिक स्थिति है । शिशु का संवेदन टूटा फूटा अधूरा होता है जबकि बालकों की तुलना में प्रौढ़ों के संवेगों में पर्याप्त स्थिरता पाई जाती है ।

भावनाओं का कोई निश्चित वर्गीकरण नहीं है हालांकि कई वर्गीकरण प्रस्तावित किए गए हैं जिसमें से संक्षिप्त रूप में निम्नलिखित है-
संज्ञानात्मक बनाम गैर संज्ञानात्मक भावनांए।
स्वाभाविक भावनाएं (जो एमिग् डाला/ मस्तिष्क के एक विशेष हिस्से से उत्पन्न होती है), बनाम संज्ञानात्मक भावनाएं (जो प्री- फ्रंटल कोरटेक्स/मस्तिष्क के अगले हिस्से से उत्पन्न होती है)

बुनियादी बनाम जटिल -जहां मूल भावनाएं और अधिक जटिल हो जाती है।

अवधि के आधार पर वर्गीकरण: कुछ भावनाएं कुछ सेकंड के लिए होती हैं (उदाहरण के लिए आश्चर्य), जबकि कुछ कई वर्षों तक की होती हैं (उदाहरण के लिए प्यार)।

भावना और भावना के परिणामों के बीच संबंधित अंतर मुख्य व्यवहार और भावनात्मक अभिव्यक्ति है।अपनी भावनात्मक स्थिति के परिणामस्वरुप अक्सर लोग कई तरह की अभिव्यक्तियां करते हैं, जैसे रोना, लड़ना या घृणा करना यदि कोई बिना कोई संबंध अभिव्यक्ति की भावना प्रकट करें तो हम मान सकते हैं की भावनाओं के लिए अभिव्यक्ति की आवश्यकता नहीं है। न्यूरो- साइंटिफिक शोध से पता चलता है कि एक “मैजिक क्वार्टर सेकंड” होता है जिसके दौरान भावनात्मक प्रतिक्रिया बनने से पहले विचार को जाना जा सकता है ।उस पल में व्यक्ति भावना को नियंत्रित कर सकता है।
जेम्स -लैंग सिद्धांत
बताता है कि शारीरिक परिवर्तनों से होने वाले अनुभव के कारण बड़े पैमाने पर भावनाओं की अनुभूति होती है। नोट-इस सिद्धांत का प्रयोग चिकित्सा क्षेत्र में भी होता है। जैसे लाफ्टर थेरेपी, डांस थेरेपी।

अब हम यहां संवेग की कुछ विशेषताओं की भी चर्चा कर लेते हैं-
संवेगात्मक अनुभूतियों के साथ कोई ना कोई मूल प्रवृत्ति अथवा मूलभूत आवश्यकता जुड़ी रहती है ।जब मूलभूत आवश्यकताओं की संतुष्टि होती है अथवा उसकी संतुष्टि में बाधा पड़ती है तो उस समय संवेग अपना अपना कार्य प्रारंभ कर देते हैं।

सामान्य रूप से संवेग की उत्पत्ति प्रत्यक्षीकरण के माध्यम से ही होती है ‌किसी भी संवेगात्मक अनुभूति के लिए पदार्थ या परिस्थिति के रूप मे किसी सशक्त उद्दीपक (स्ट्रांग स्टीम्युलस) आवश्यकता होती है।शरीर में होने वाले सभी प्रकार के अनुकूल या प्रतिकूल परिवर्तनों द्वारा संवेगों की मात्रा और गति दोनों में ही तीव्रता आती है।

किसी भी संवेग के जाग्रत होने के लिए भावनाओं (फिलिंग्स) का होना आवश्यक है।भावनाओं का उफान ही उत्तेजनापूर्ण स्थिति पैदा करके व्यक्ति को कुछ करने के लिए मजबूर करता है। भावनाएं जब इतनी अधिक बलवती हो जाती हैं कि वह व्यक्ति के मस्तिष्क को बेचैन कर उसे तत्काल कार्यवाही करने के लिए पूरी तरह उत्तेजित कर दें तब वे संवेग का रूप धारण कर लेती हैं। इस तरह कुछ न कुछ करने की वेगवती इच्छा संवेगात्मक अनुभव की एक मुख्य विशेषता मानी जाती है।

संक्षेप में_
हम कह सकते हैं कि प्रत्येक जीवित प्राणी को संवेगों की अनुभूति होती है। व्यक्ति को अपनी वृद्धि और विकास की हर अवस्था में इनकी अनुभूति होती है। सभी व्यक्ति संवेगात्मक रूप से एक जैसे नहीं होते।संवेगों की मात्रा और अभिव्यक्ति के ढंग में पर्याप्त अंतर पाया जाता है।
एक ही संवेग विभिन्न प्रकार के उद्दीपन ,चेष्टाओं, वस्तुओं और क्रियाओं द्वारा जागृत किया जा सकता है।
संवेगतुरंत ही जागृत हो जाते हैं परंतु उनका अंत धीरे-धीरे होता है।
कोई भी संवेग एक बार जागृत होने पर काफी समय तक बना रहता है और जाते-जाते अपना प्रभाव संवेगात्मक मूड (इमोशनल मूड) के रूप में छोड़ जाता है।
संवेगों में स्थानांतरण (ट्रांसफरबिलिटी)का गुण भी पाया जाता है। अपने अफसर से बिना अपराध- झीड़की या डांट- फटकार खाने पर उत्पन्न क्रोध घर में बच्चों या पत्नी के साथ बुरा व्यवहार करने के रूप में अभिव्यक्त होता है। अर्थात एक संवेग अपनी तरह के कई संवेगों को जन्म दे सकता है।