“सामाजिक अनुसंधान”

"सामाजिक अनुसंधान"

“सामाजिक अनुसंधान”
भूमिका- समाज में अनेक प्रकार की समस्याएं होती हैं, हम इन समस्याओं का निदान करना चाहते हैं।समस्याओं के निदान के लिए व्यवस्थित ज्ञान की आवश्यकता होती है।सामाजिक अनुसंधान के माध्यम से सामाजिक समस्याओं के संबंध में हमें व्यवस्थित ज्ञान की प्राप्ति होती है।सामाजिक अनुसंधान वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सामाजिक घटनाओं और सामाजिक समस्याओं के कारण इनके अंतः संबंधों का ज्ञान, उनमें निहित प्रक्रियाओं का अध्ययन विश्लेषण और तदनुसार परिणामों का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। अतः हमारी आज की चर्चा इसी परिपेक्ष्य में होने वाली है-

सामाजिक अनुसंधान शब्द दो शब्दों सामाजिक+अनुसंधान से बना है। सामाजिक अनुसंधान का अर्थ जानने से पहले हमें अनुसंधान शब्द का अर्थ समझना आवश्यक है।अनुसंधान शब्द की उत्पत्ति एक ऐसे शब्द से हुई है जिसका अर्थ ‘दिशाओं में जाना’
अथवा ‘खोज करना’ होता है।

अनुसंधान वह व्यवस्थित वैज्ञानिक पद्धति है,
जिसमें वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोग द्वारा वर्तमान ज्ञान का परिमार्जन,उसका विकास अथवा किसी नये तथ्य की खोज द्वारा ज्ञान कोष में वृद्धि की जाती है। स्पष्ट की सामाजिक तथ्यों, घटनाओं ,सिद्धांतों के संबंध में नवीन ज्ञान की प्राप्ति हेतु प्रयोग में लाए गए वैज्ञानिक पद्धति ही सामाजिक अनुसंधान है।

दूसरे शब्दों में,सामाजिक अनुसंधान का अर्थ सामाजिक अनुसंधान या सामाजिक शोध जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है- सामाजिक जीवन के बारे में नवीन तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने से संबंधित है।

मोजर के शब्दों में,”व्यवस्थित जानकारी, जो सामाजिक घटनाओं और समस्याओं के संबंध में की जाती है, सामाजिक अनुसंधान कही जाती है”।

सामाजिक अनुसंधान का क्षेत्र:-

सामाजिक अनुसंधान का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत है। यदि यह कहा जाए की सामाजिक शोध का क्षेत्र संपूर्ण समाज है तो शायद यह गलत नहीं होगा। यह बात अलग है कि समाज के बारे में क्या और किस बात का अध्ययन किया जाता है, अध्ययन की प्रकृति क्या है और अध्ययन में कौन सी प्रविधि व पद्धति अपनाई जा रही है आदि बातें बहुत हद तक इस पर निर्भर करती हैं कि अध्ययन किस विषय के क्षेत्र में आता है।

समाज से वस्तुतः आशय सामाजिक व्यवस्था अर्थात उसके संरचनात्मक ढांचे व उसकी क्रियात्मकता से है। यह संरचनात्मक ढांचा, परस्पर संबद्ध विभिन्न उपसंरचनाओं, ढांचों, संस्थाओं या तंत्रो जैसे आर्थिक, राजनीतिक ,धार्मिक ,सांस्कृतिक, विधिक एवं न्यायिक आदि से बना होता है। इनसे संबंधित तथ्यों का अध्ययन सामाजिक शोध के
दायरे में आता हैं।
सामाजिक व्यवस्था व उसकी उपव्यवस्थाओं ,जैसे अर्थव्यवस्था , शासन व्यवस्था, विधि एवं न्याय व्यवस्था, धार्मिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था आदि में स्थायित्व, निरंतरता एवं परिवर्तन की प्रकृति, स्वरूप एवं दिशा आदि से संबंधित विषयों पर शोध कार्य सामाजिक विज्ञानों, जैसे समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र,राजनीति शास्त्र, धर्मशास्त्र तथा न्यायशास्त्र आदि में किया जाता है।

अब हम थोड़ा सामाजिक अनुसंधान की विशेषताओं के बारे में भी चर्चा कर लेते हैं जो निम्न प्रकार से है-
सामाजिक जीवन से संबंधित:-
सामाजिक शोध सामाजिक जीवन से संबंधित होता है। सामाजिक शोध के अंतर्गत सामाजिक जीवन के समस्त पहलुओं का अध्ययन किया जाता है।

पारस्परिक संबंधों की खोज:-
समझ में अनेक प्रकार के सामाजिक घटनाएं अलग-अलग दिखाई देती हैं, किंतु आंतरिक दृष्टि से यह घटनाएं अंत: संबंधित हैं।

विश्वसनीय ज्ञान की प्राप्ति:-
सामाजिक अनुसंधान में हमें नवीन ज्ञान तो प्राप्त होता ही है ,साथ ही ऐसा ज्ञान भी प्राप्त होता है जिस पर विश्वास किया जा सके।

सामाजिक प्रगति में सहायक:-
समाज में निरंतर परिवर्तन हो रहे हैं। इन परिवर्तनों से समाज का विकास होना तो स्वाभाविक है, किंतु समाज की प्रगति तभी संभव है, जब विकास को सामाजिक कल्याण की दृष्टि से किया जाए और प्रगति का मूल्यांकन किया जा सके।

नवीन और प्राचीन तथ्यों की खोज:-सामाजिक शोध के माध्यम से सामाजिक जीवन से संबंधित तथ्यों की खोज की जाती है। तथ्यों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। प्राचीन और नवीन समाजशास्त्र के अंतर्गत व्यक्ति और समाज का अध्ययन किया जाता है। ये दोनों ही गतिशील है। इस गतिशील प्रकृति के कारण प्राचीन तथ्यों को नवीन परिस्थितियों में लागू करना पड़ता है।
पुराने तथ्यों का पुनर्सत्यापन:-
समाजशास्त्र की विधि केवल नवीनतम या घटनाओं की खोज में ही नहीं है। समाज गतिशील है इसलिए यह आवश्यक है की समाज से संबंधित उन तथ्यों का भी समय-समय पर पूनर्सत्यापन किया जाए जो हमें पहले से ही ज्ञात है ।ऐसा करने से हमें यह ज्ञात होता है कि उन तथ्यों की वर्तमान स्थिति क्या है और पहले की तुलना में उनमें क्या परिवर्तन हुए हैं।

इसके साथ इसकी कुछ अन्य विशेषताएं भी हैं जैसे-
सामाजिक अनुसंधान की प्रकृति वैज्ञानिक है। यह शोध अनुभव परक है।यह शोध सामाजिक सिद्धांतों के निरूपण में सहायक है। यह शोध सामाजिक अनुसंधान का सैद्धांतिकी व प्रकार्यात्मक उपयोग करता है। यह शोध सामाजिक घटनाओं के संबंध में कार्य ,कारणात्मक विवेचन करता है।

सामाजिक अनुसंधान के कुछ प्रेरक तत्व भी है जैसे-

अज्ञात के प्रति जिज्ञासा। अप्रत्याशित परिस्थिति पैदा होना।
नवीन पद्धतियों की खोज।
कार्य- कारण संबंधों को जानने की इच्छा।

संक्षेप में
हम कह सकते हैं कि अनुसंधान एक समस्या का सावधानीपूर्वक और निष्पक्ष भाव से किया गया अध्ययन होता है जो तथ्यों की भिन्नता, उनके स्पष्टीकरण व सामान्यीकरण पर निर्भर होता है। इसी बात को हम दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि किसी समस्या को हल करने अथवा एक परिकल्पना की परीक्षा करने अथवा नई घटना या नए संबंधों को खोजने के उद्देश्य से सामाजिक परिस्थितियों में प्रयुक्त कार्य विधि का प्रयोग करना ही सामाजिक शोध है जिससे सामाजिक जीवन के बारे में नवीन तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने में सहायता मिलती है।