नमस्कार दोस्तो, बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की खासियत अगर थ्री सी ( क्राइम, करप्शन और कम्युनलिज्म ) के प्रति जीरो टॉलरेंस को लेकर बनी है। इसके साथ ही गठबंधन की राजनीति में उलटफेर के कारण भी। इसलिए खबरों की दुनियां में शायद ही कोई ऐसा नेता होगा, जिसके पाला बदलने के नाम पर अखबारों में सुर्खिया पाई हैं। बिहार को एक बार फिर विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिला है। ऐसे में एक बार फिर चर्चा तेज हो गई कि नीतीश कुमार बहुत जल्द इंडिया गठबंधन का दामन थामेंगे। कांग्रेस के एक विधायक ने इस बार इस चर्चा को गति दी है।
कांग्रेस विधायक ने क्या कहा
दरअसल, बक्सर के कांग्रेस विधायक संजय तिवारी उर्फ मुन्ना तिवारी का कहना है कि नाराज चल रहे नीतीश कुमार जल्द ही एनडीए का दामन छोड़ेंगे और महागठबंधन में शामिल होंगे। उनकी नाराजगी की बड़ी वजह है उनके ड्रीम प्रोजेक्ट बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलना। मुन्ना तिवारी के अनुसार, केंद्र सरकार का सीधे-सीधे ना कहने के कारण नीतीश कुमार इतने नाराज हो गए कि नीति आयोग की बैठक तक में नहीं गए।
आखिर क्यों उठती हैं ऐसी खबरें?
दरअसल, इस तरह की खबर उठने के आधार में नीतीश कुमार स्वयं भी हैं। उनके साथ कार्य कर रहे राजनीतिक लोगों को भी पता नहीं चलता कि किस कारण से नाराज हो जाएंगे और खुश। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि इनकी राजनीतिक नाराजगी प्रकट होती भी है तो इनके सबसे करीब साथी के कंधे पर सवार हो कर। एनडीए में आना होता है तो वे इसका कारण अपने करीबी संजय झा की राय को बताते हैं या फिर महागठबंधन में जाना होता है तो विजेंद्र यादव का नाम आता है।
राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा है कि नीतीश कुमार राजनीति को अपने इर्द-गिर्द रखने के लिए और साथ ही साथ सामने वाले को राजनीतिक हैसियत दिखाने के लिए भी करते हैं। और इसके लिए जिन दो शब्दों का सबसे ज्यादा सहारा या कह सकते हैं राजनीतिक इस्तेमाल नीतीश कुमार ने किया, वह शब्द है सांप्रदायिकता और जंगल राज। जंगल राज कह एनडीए के साथ और साम्प्रदायिकता के आरोप के साथ महागठबंधन के साथ, राजनीतिक पेंग भरते रहते हैं वह भी मुख्यमंत्री की कुर्सी की सलामती के साथ। खास बात यह भी है कि उनकी अंतरात्मा कब जाग जाती है, इसका भी पता उनके करीबियों को नहीं चलता है। और फिर एक झटके में नीतीश कुमार पता बदल लेते हैं।
नीतीश अब कहीं नहीं जाएंगे!
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ले कर अक्सर गठबंधन बदलने की बात होती है। तो इसकी वजह भी है। अतीत की घटना पर नजर डालेंगे तो स्थिति स्पष्ट होती दिखेंगी। वैसे वे बात-बात पर नाराज हो जाते हैं। वैसे तुनुक मिजाज भी हैं, और आत्मा की आवाज भी सुनते रहते हैं। फिर एक झटके में पलटी मार लेते हैं। लेकिन इस बार जितनी आत्मीयता और समर्पण का भाव दिखाया है, उससे ऐसा लगता है कि अब वे कहीं इधर से उधर नहीं जाएंगे। इसके पीछे कारण भी है कि उन्हें अब सिर्फ सीएम की कुर्सी नहीं बचानी है बल्कि अपनी पार्टी को भी बचाए रखना है। और उससे भी बड़ी बात है कि उम्र के जिस पड़ाव पर हैं वहां ज्यादा भाग दौड़ की संभावना नहीं है।