सीखने का स्थानांतरण

सीखने का स्थानांतरण

सीखने का स्थानांतरण
भूमिका _सीखना एक जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है जन्म के तुरंत बाद से ही व्यक्ति सीखना प्रारंभ कर देता है और संपूर्ण जीवन जाने अनजाने में कुछ न कुछ सीखता रहता है।
शिक्षा के क्षेत्र में सीखने या प्रशिक्षण स्थानांतरण की संरचना नई नहीं है ।सीखने में स्थानांतरण आवश्यक है क्योंकि पूर्व सिखलाई के संदर्भ में स्थानांतरण हमेशा होता है ।जब हम एक तकनीक सीखते हैं तो प्रथम चरण में जो कुछ सीखा जाता है अगले चरण में सीखने में मदद करता है। प्रख्यात सिखलाई कर्व (लर्निंग कर्व) स्थानांतरण की ही उत्पाद है। एक स्थिति में प्रशिक्षण व सिखलाई दूसरी स्थिति में प्रशिक्षण और सिखलाई पर प्रभाव डालता है क्योंकि एक स्थिति में सीखा गया ज्ञान अगली स्थिति तक चलता है ।स्थानांतरण का दर्जा तब अधिक होता है जब दो कार्यो की प्रशिक्षण स्थितियां एक जैसी हों। अतः आज की हमारी चर्चा का केंद्र बिंदु सीखने या प्रशिक्षण का स्थानांतरण, इसके प्रकार और सिद्धांत रहेंगे।

जब हम कोई नया कार्य करते हैं नया कौशल सीखते हैं तो हमें ऐसा लगता है कि इस नवीन कार्यों को करने या सोचने में पहले कुछ सीखा हुआ ज्ञान तथा अनुभव काम में आ रहा है ।जैसे कोई टेनिस खेलना जानता है तो उसे बैडमिंटन खेल सीखने में बहुत सुविधा होती है। इस प्रकार से किसी एक परिस्थिति में सीखा हुआ ज्ञान अथवा लिया हुआ प्रशिक्षण किसी दूसरी स्थिति में प्राप्त किए जाने वाले ज्ञान अथवा कौशल के अर्जन को प्रभावित करता है ।इस प्रभाव को ही सीखने या प्रशिक्षण का स्थानांतरण कहा जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि एक क्षेत्र या परिस्थिति में उपलब्ध ज्ञान अथवा कौशल का किसी दूसरी स्थिति में प्राप्त किए जाने वाले ज्ञान अथवा कौशल के अर्जन को प्रभावित करना प्रशिक्षण का स्थानांतरण कहलाता। क्रो एंड क्रो के अनुसार के “सीखने के एक क्षेत्र में प्राप्त होने वाले ज्ञान या कुशलताओं का तथा सोचने, अनुभव करने का और कार्य करने की आदतों का सीखने के दूसरे क्षेत्र में प्रयोग करना सामान्यतः प्रशिक्षण का स्थानांतरण कहलाता है ।ज्ञान के स्थानांतरण के फलस्वरुप नवीन ज्ञान तथा कौशल के उपार्जन में सहायता मिलने के स्थान पर बधाऐं भी खड़ी हो सकती है।इस दृष्टिकोण से स्थानांतरण के प्राय: तीन रूप देखने को मिलते हैं। १-सकारात्मक स्थानांतरण ,२-नकारात्मक स्थानांतरण, तथा ३-शून्य स्थानांतरण।
-सकारात्मक स्थानांतरण में, पहले की सीख बाद कि सीख के लिए लाभदायक व उपयुक्त रहती है।जैसे अगर साइकिल चलाना आएगा पहले से तो मोटरसाइकिल सीखने में या स्कूटी सिखने में आसानी होगी।
या हैंडबॉल खेलने वाला, बास्केटबॉल अच्छा खेलेगा।
-नकारात्मक स्थानांतरण धनात्मक स्थानांतरण के विपरीत, यदि किसी हुनर के होते हुए दूसरे हुनर को सीखने में असुविधा हो तो उसे नकारात्मक या ऋणात्मक स्थानांतरण कहते हैं। जैसे अगर मैं दाएं हाथ से लिखती हूं और अगर मैं बाएं हाथ से लिखूं तो व्यवधान आएगा। या कोई वॉलीबॉल का खिलाड़ी हॉकी खेलेगा तो उसे खेलने में दिक्कत आएगी।
-शून्य स्थानांतरण में पूर्व के ज्ञान (हुनर) या अनुभव का नई परिस्थिति में, कुछ नया सीखने में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा मतलब न अच्छा न बुरा होगा तो इसे शून्य स्थानांतरण कहते हैं।
जैसे_ किसी को कंप्यूटर प्रोग्राम आता है और उससे कहा जाए कि तुम अच्छा खाना बनाना और वह नहीं बना पाता है तो इसमें कंप्यूटर सीखने का कोई प्रभाव नहीं है।मतलब कि वह खाना अच्छा बना भी सकता है नहीं भी बन सकता है। क्योंकि कंप्यूटर एक अलग क्षेत्र है और खाना बनाना एक बिल्कुल अलग क्षेत्र है दोनों का एक दूसरे से कोई संबंध नहीं है।

सीखने के स्थानांतरण के लिए कुछ सिद्धांत भी काम करते हैं जैसेऔपचारिक मानसिक अनुशासन का सिद्धांत, समान तत्वों का सिद्धांत, सामान्यकरण का सिद्धांत ,जागृत आदर्शों का सिद्धांत, दो कारक सिद्धांत व संकाय का सिद्धांत। यह सभी सिद्धांत सीखने के स्थानांतरण के एक या दूसरे पहलू व पक्ष को उजागर करते हैं,अगर हम इन सिद्धांतों का निरीक्षण करें तो पाएंगें कि यह सभी सिद्धांत एक दूसरे से विरोध नहीं करते बल्कि एक दूसरे के पूरक हैं जो सीखने के स्थानांतरण की स्थिति को स्पष्ट करते हैं। संक्षेप में हम कह सकते हैं किसारी शिक्षा इस तथ्य पर आधारित है कि अनिवार्य हुनर, समझ ,मानदंड, सोच तथा अन्य सीखे गए कार्य बाद की अलग-अलग स्थितियों को प्रभावित करते हैं ।प्रशिक्षण का स्थानांतरण एक स्वत: विधि नहीं है ।भाग लेने वाले जितने समझदार होंगे उसी अनुपात में स्थानांतरण का स्तर होगा ।इसे मानदंड, समझ,और सिखने वाले द्वारा किए गए प्रयत्न भी प्रभावित करते हैं ।व्यक्ति में एक अंग से दूसरे अंग में भी प्रशिक्षण का स्थानांतरण हो सकता है एक हाथ से सीखे गए कार्य का दूसरे हाथ की कार्य कुशलता पर प्रभाव पड़ता है चार्ल्स ए० बूचर के शब्दों में -“अनुभव जितना अर्थ पूर्ण होगा स्थानांतरण उतना अधिक संभावनापूर्ण होगा।”