में स्वच्छता की व्यवस्था”
भूमिकाहमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए साफ-सफाई बेहद जरूरी है। स्वच्छता हमारे जीवन के हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। “विद्यालयी वातावरण में स्वच्छता की व्यवस्था” जीवन का अहम हिस्सा है। एक स्वच्छ विद्यालय छात्रों को सफलता प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।सफाई सामाजिक और बौद्धिक स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। स्वच्छता से हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है और दूसरों का भी हम पर भरोसा बनता है। तो आज की हमारी चर्चा का केंद्र बिंदु विद्यालयी स्वच्छता पर आधारित रहेगी- स्वच्छता का तात्पर्य स्वच्छता स्वस्थ जीवन की एक आवश्यक व अपरिहार्य स्थित है। विद्यालयी वातावरण,जहां देश की भावी पीढ़ी का निर्माण होता है, में तो स्वछता का महत्व और भी बढ़ जाता है ।विद्यालय के वातावरण को स्वच्छ व निरापद कैसे रखा जाए, यह जानने से पूर्व स्वच्छता का तात्पर्य समझना आवश्यक है। स्वच्छता की अवधारणा के निषेधात्मक व सकारात्मक दो पक्ष है। निषेधात्मक पक्ष के अंतर्गत वातावरण को उन अवांछनीय तत्वों से रहित करना है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। जैसे कूड़े -करकट ,मल- मूत्र ,सड़े गले पानी ,कीट – कीटाणु आदि को दूर करने की व्यवस्था तथा रोगों को फैलाने वाली स्थितियों की रोकथाम आवश्यक है।स्वच्छता के सकारात्मक पक्ष के अंतर्गत विद्यालय में ऐसी दशाओं की व्यवस्था करना है जिनके परिणाम स्वरूप अस्वच्छता की स्थितियां उत्पन्न ही न हो सकें, तथा स्वास्थ्यवर्धक वातावरण का निर्माण हो सके जैसे विद्यालय परिसरण में वृक्षारोपण, खुले हुए, प्रकाश व ताजा वायुक्त परीसर आदि की व्यवस्था ।
विद्यालय में स्वच्छता, भवन तथा मैदान की प्रतिदिन की स्वच्छता स्वास्थ्य तथा विद्यालय के उत्तम प्रबंध के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है ।सफाई एवं स्वच्छता का वातावरण बालकों में स्वच्छता के लिए प्रेम तथा स्वच्छता एवं सफाईपूर्वक जीवन व्यतीत करने की आदत डाल देगा। धूल निश्चय पूर्वक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। धूल के कणों से बालक में संक्रामक रोग फैलने की आशंका होती है तथा विशेष रूप से श्वास लेने की प्रक्रिया को प्रभावित करती है। इस बात का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक कि वर्षा ऋतु में विद्यालय के चारों ओर गड्ढो में पानी भरा नहीं रहे नही तो उससे मच्छर उत्पन्न हो जाने की आशंका रहती है जिनसे संक्रामक रोग फैलेगें। ऐसे गड्ढों को भरवा देना चाहिए। स्नानागार को साबुन तथा पानी से धोकर स्वच्छ करवाना चाहिए। शौचालय तथा मूत्रालय को दिन में तीन- चार बार पानी से धुलवाना चाहिए। संक्रामक रोंग न फैलें, इसके लिए यह भी आवश्यक है कि उनमें समय -समय पर फिनायल ,डी.डी.टी.व अन्य जीवाणुनाशक औषधीयां छिड़कवा दी जाएं।
संक्षेप में_हम कह सकते हैं कि ‘स्वच्छ भारत’ ‘स्वच्छ विद्यालय’ की थीम पर चलाया जा रहा है ।इस अभियान की एक प्रमुख विशेषता यह सुनिश्चित करना है कि भारत के प्रत्येक स्कूल में कार्यप्रणाली का और अच्छी तरह से अनुरक्षित पानी ,साफ- सफाई और स्वच्छता सुविधाओं का एक सेट होना चाहिए। स्कूलों में पानी, साफ- सफाई और स्वच्छता से तात्पर्य तकनीकी और मानव विकास घटकों के ऐसे संयोजन से है जो स्कूल में एक स्वस्थ वातावरण बनाने और उचित स्वास्थ्य एवं स्वच्छता परीपाटियां विकसित करने या उनका समर्थन करने के लिए आवश्यक है। तकनीकी घटकों में स्कूल परिसर में बच्चों और शिक्षकों के उपयोग के लिए पीने के पानी की ,हाथ धोने की, शौचालय की और साबुन की सुविधाएं शामिल हैं। मानव विकास घटक वे गतिविधियां हैं जिनसे स्कूल के भीतर ऐसी स्थितियों को और बच्चों की ऐसी आदतों को बढ़ावा मिलता है जो पानी, साफ -सफाई और स्वच्छता संबंधी बीमारियों को रोकने में सहायक है।