“जिम्नेजियम”
भूमिका-
आज जगह-जगह पर विद्यालय चलाए जा रहे हैं।पर श्रेष्ठ विद्यालय या आदर्श विद्यालय उसी विद्यालय को कहा जा सकता है जो शिक्षा के साथ-साथ अन्य क्रियाओं को भी करने की सुविधा उपलब्ध कराए और क्रियाओं को सही ढंग से कराया जाए।
श्रेष्ठ विद्यालय में खेल के मैदान, पुस्तकालय, प्रयोगशालाएं ,कॉमन रूम ,कैंटीन के अतिरिक्त जिम्नेजियम (व्यायामशाला )की व्यवस्था हो तो वह विद्यालय श्रेष्ठ विद्यालय होने की सभी शर्तों को पूरा करता है। अतः आज की हमारी चर्चा का विषय इसी परिप्रेक्ष्य में होने वाला है।
“जिम्नेजियम” भूमिका- तात्पर्य “जिम्नेजियम शब्द लैटिन भाषा से बना है जिसका अर्थ कम से कम वस्त्र पहन कर व्यायाम करना है और वह भवन जहां व्यायाम (शारीरिक क्रियाएं) किया जाता है वह व्यायामशाला कहलाता है।”
जब आदर्श विद्यालय की बात आती है तो एक बात हमारे जेहन में आता है की क्या सभी विद्यालय शिक्षा के सभी मानकों को पूरा कर पा रहे है?क्या इन विद्यालय में छात्रों का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक ,( सर्वांगीण) विकास संभव है? तात्पर्य यह है कि इन विद्यालयों में शिक्षा से संबंधित सभी सुविधाएं (जिम्नेजियम, शारीरिक शिक्षा के प्रशिक्षक एवं शिक्षक, खेल के मैदान )उपलब्ध हैं या नहीं शारीरिक शिक्षा की क्रियाओं को साल भर कराने के लिए जिम्नेजियम का विद्यालय में होना बहुत आवश्यक है क्योंकि जब मौसम अनुकूल (न सर्दी, न गर्मी , न वर्षा) है तब शारीरिक शिक्षा के क्रियाओं को खुले मैदान में कराया जा सकता है ।लेकिन जब मौसम प्रतिकूल( सर्दी ,गर्मी , वर्षा अधिक हो) है तो ऐसे समय में शारीरिक क्रियाओं को खुले मैदान में कराया जाना संभव नहीं है। ऐसे समय में इन क्रियाओं को विशेष भवन में कराया जाता है जिसे जिम्नेजियमज कहते हैं।
जिम्नेजियम की आवश्यकता व महत्व को को निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है
जैसे- जिम्नेजियम की मदद से शारीरिक शिक्षा की क्रियाओं को नियमित रूप से कराया जा सकता है। जिम्नेजियम में क्रियाओं को व्यवस्थित ढंग से कराकर छात्रों को अधिक लाभ प्राप्त कराया जा सकता है। जिम्नेजियम से छात्रों में शारीरिक शिक्षा के प्रति रुचि तथा जिज्ञासा उत्पन्न की जा सकती है । जिम्नेजियम की मदद से विद्यार्थियों की शारीरिक, मानसिक विकास की गति को बढ़ाया जा सकता है।
एक आदर्श विद्यालय में जिम्नेजियम का होना जितना आवश्यक है उतना ही आवश्यक एक अच्छे जिम्नेजियम में निम्न विशेषताओं का होना हैं_
स्थान- जिस जगह पर जिम्नेजियम को स्थापित किया जाए, वह जगह कक्षाओं से थोड़ा दूर होना चाहिए क्योंकि शारीरिक क्रियाओं के करने से वहां पर शोर होगा तो पढ़ाई में व्यवधान उत्पन्न होगा।
व्यायाम शाला का आकार जिम्नेजियम का आकार प्रकार विद्यालय एवं छात्रों की संख्या पर निर्भर करता है।
जिम्नेजियम में हवा एवं प्रकाश की उचित व्यवस्था होनी चाहिए क्योंकि जब बरसात का मौसम होता है तो बादल छा जाते हैं अंधेरा हो जाता है ,ऐसे में जिम्नेजियम में वैकल्पिक (विद्युत )प्रकाश की व्यवस्था होनी चाहिए।
फर्श -जिम्नेजियम का फर्श लकड़ी या कार्क का बना होना चाहिए क्योंकि टूटे-फूटे फर्श
पर व्यायाम करने से परेशानी होती है तथा चोट लगने का भी भय रहता है।
जिम्नेजियम की दरवाज़े और खिड़कियां बाहर की ओर खुलनी चाहिए इससे वह अंदर जगह कम घेरेंगे तथा विद्यार्थियों को व्यायाम करने में व्यवधान भी उत्पन्न नहीं होगा।
जिम्नेजियम का निर्माण करते समय वहां की जलवायु का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
जिम्नेजियम में उपकरण – जिम्नेजियम को जिम्नेजियम इसलिए कहते हैं क्योंकि वहां शारीरिक क्रियोओं को करने के लिए कुछ विशेष उपकरण की व्यवस्था होती है -उपकरणों के अभाव में जिम एक साधारण कमरा ही रह जाता है अतः जिम्नेजियम में कुछ मुख्य चीजें होनी चाहिए जैसे वाल्टिंग टेबल, जर्मन हॉर्स ,स्प्रिंग बोर्ड ,मैट्स, होरिजोंटल बार ,रोमन रिंग्स, रोप्स, लैडर बीम,बैलेंसिंग बेंचेज व पैरेलल बार आदि।
जिम्नेजियम को तभी पूर्ण माना जा सकता है जब उसके साथ कुछ अन्य कक्ष संलग्न हो, जैसे शौचालय, कपड़े बदलने का कक्ष, स्नान घर , तथा पीने के पानी की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर छात्रों को दूर न जाना पड़े।
संक्षेप में _हम कह सकते हैं कि उपर्युक्त विशेषताओं को पूरा करते हुए , जिम्नेजियम सही मायने में जिम्नेजियम कहलाने की योग्यता प्राप्त कर लेता है और इन विशेषताओं से युक्त जिम्नेजियम
जिन विद्यालयों में है ,वह विद्यालय आदर्श विद्यालय हैं।