मनोरंजन”
भूमिकानिरसता और उदासीनता मनुष्य की कार्य शक्ति को शिथिल कर देती है और जीवन के दैनिक कार्यों में उसका मन नहीं लगता। इस निरस्ता और उदासीनता को दूर करने के लिए मनुष्य ऐसी क्रिया की तलाश करता है, जो उसके मन को आनंद के ऐसे लोक में ले जा सके जहां उसका मन दैनिक ऊब से मुक्ति पा सके, दैनिक ऊब से इस मुक्ति को मनोरंजन का नाम दिया जाता है। यदि मनुष्य को उदासीनता और निरस्ता की स्थिति में काम करना पड़ जाए तो सही ढंग से काम नहीं कर सकेगा और ना ही वह उस काम के लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगा। जिस क्रिया से उसमें फिर से काम करने की शक्ति उत्पन्न होती है वह क्रिया मनोरंजन कहलाती है ।अतः आज की हमारी चर्चा इसी परिप्रेक्ष्य में होने वाली है
मन को आनंदित करना- मनोरंजन है ।अंग्रेजी भाषा में मनोरंजन को रिक्रिएशन कहा जाता है। री- क्रिएशन शब्द दो शब्दों के जोड़ से बना है ‘रि+ क्रिएशन’ री का अर्थ है पुनः या फिर और क्रिएशन का अर्थ है निर्माण करना, अर्थात रीक्रिएशन का अर्थ हुआ पुनः निर्माण करना (खोई हुई शक्ति को पुनः प्राप्त करना)। मानसिक आनंद मनुष्य में शिथिल पड़ गई कार्य शक्ति को पुनः निर्मित करने की क्षमता प्रदान करता है इसलिए वह बार-बार रिक्रिएशन या मनोरंजन की आवश्यकता का अनुभव करता है।
साल्वसन ने ठीक ही कहा है- “मनोरंजन गति नहीं बल्कि यह एक संवेग है यह एक व्यक्तिगत अनुक्रिया है एक मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया है यह जीवन का मार्ग है जीवन के प्रति एक दृष्टिकोण है।”
इसी प्रकार हटचिंसन ने कहा है- “मनोरंजन अवकाश के समय की ऐसी क्रिया है जो समाज द्वारा मान्य होता है और जिसमें स्वेच्छा से भाग लेने वाले व्यक्ति को तुरंत आत्मिक संतुष्टि प्राप्त होती है।”
अब प्रश्न उठता है कि मनोरंजन के लिए आवश्यक कारक क्या-क्या हो सकते हैं? तो इस प्रश्न का उत्तर हम निम्नलिखित रूप में दे सकते हैं-
खाली समय का सही उपयोग करने के लिए मनुष्य पहले से ही ये तय कर लेता है कि खाली समय का सदुपयोग किस क्रिया से करना है जिससे उसका मनोरंजन हो सके ,उसे संतुष्टि मिल सके, उसके खाली समय का सदुपयोग हो सके जिससे भविष्य में उसके विकास संबंधित कार्यों में लाभ पहुंचे।
मनुष्य अपनी इच्छानुसार खाली समय का सदुपयोग करने के लिए विभिन्न क्रियाएं करता है- जैसे मछली पकड़ता है ,बाहर घूमने जाना, गाना गाना , लड़कियां सिलाई -कढ़ाई करती हैं, खाना बनाती हैं ,घर को साफ सुथरा रखतीहैं ये सब करके प्रसन्नता और संतुष्टि मिलती है।
मनोरंजन क्रिया तभी संभव होती है जब इच्छा साथ दे रही हो किसी भी क्रिया को दबाव या धमकी देकर किया जाए तो उस क्रिया से प्रसन्नता व संतुष्टि प्राप्त नहीं होती है।
मनुष्य की भावनाओं और उमंग की पूर्ति ही प्रसन्नता का कारण बनती है।
किसी भी प्रकार की क्रिया जिसको समाज मान्यता न देता हो, वह मनोरंजन क्रियाएं नहीं होती। अब जैसे जुआ खेलना, शराब पीना ,डर्टी मूवी देखना,डर्टी नोवेल रीड करना ये सब करने में प्रसन्नता होती है लेकिन समाज ऐसी क्रियाओं कि आज्ञा नहीं देता।
उपर्युक्तविवरण के आधार पर हम कह सकते हैं कि मनोरंजन खाली समय का सदुपयोग करने की क्रिया होती है जिसे मनुष्य अपनी खाली समय में अपनी इच्छानुसार अपने प्रसन्नता व संतुष्टि के लिए ऐसी क्रिया को करता है।
जिसे समाज भी मान्यता देता है,
अब प्रश्न यहां यह उठता है कि मनोरंजन के लक्ष्य तथा उद्देश्य क्या है?क्यों इस क्रिया को समाज मान्यता देता है? तो इस प्रश्न का उत्तर हम निम्न प्रकार से दे सकते हैं-
मनोरंजन का मुख्य लक्ष्य व्यक्ति के सर्वांगीण विकास से है।
मनुष्य द्वारा सर्वांगीण विकास के लिए लक्ष्य को मनोरंजन क्रियाओं द्वारा प्राप्त करने के लिए विभिन्न क्रियाओं का सहारा लेना पड़ता है। यह क्रियाएं ही मनोरंजन के लक्ष्य तक पहुंचने के उद्देश्य होती हैं ।
मनोरंजन के उद्देश्य निम्नलिखित हैं –
जैसे व्यक्तित्व का निर्माण करना,, खाली समय का सदुपयोग करना ,संतुष्टि की प्राप्ति, मानसिक विकास, शारीरिक विकास व सामाजिक विकास।
आज के इस भाग दौड़ के युग में हर व्यक्ति अपने को प्रसन्न संतुष्ट रखने के लिए खाली समय का सदुपयोग करने हेतु मनोरंजन क्रिया में अपनी संलिप्ता करता है।
इस हेतु विभिन्न एजेंसीयां आज कार्य कर रही हैं।जैसे -घर, सरकारी संस्थाएं ,राज्य और प्रांतीय सरकार, स्वैच्छिक और अर्ध सरकारी संस्थाएं ,निजी संस्थाएं व व्यापारिक संस्थाएं।
संक्षेप में_
हम कह सकते हैं कि मनोरंजन खाली समय का सदुपयोग करने की क्रिया होती है, जिसे मनुष्य अपने खाली समय में अपनी इच्छानुसार अपने प्रसन्नता व संतुष्टि के लिए करता है जिससे व्यक्ति में रचनात्मकता भी विकसित होती है और साथ ही ऐसी क्रियाओं को करता है, जिसे समाज भी मान्यता देता है।