“रोग”

"रोग"

रोग”
भूमिका_
रोग (व्याधि) अर्थात अस्वस्थ होना। यह चिकित्सा विज्ञान का मूलभूत संकल्पना है। प्राय: शरीर के पूर्ण रूपेण कार्य करने में किसी प्रकार की कमी होना रोग कहलाता है। जिस व्यक्ति को रोग होता है उसे रोगी कहते हैं। हिंदी में रोग को बीमारी, रुग्णता ,व्याधि और विकार भी कहते हैं। अतःहमारी आज की चर्चा इसी परिप्रेक्ष्य में होने वाली है-

रोग एक ऐसी स्थिति है जिसमें स्वास्थ्य खराब हो जाता है या दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं की स्वास्थ्य की स्थिति से प्रस्थान को रोग कहा जाता है।
जब हमारे शरीर में आराम नहीं होता है, तो यह एक बीमारी है या यह एक मानव शरीर का परिवर्तन है जो महत्वपूर्ण कार्यों के प्रदर्शन में बाधा डालता है।
वेबस्टर डिक्शनरी के अनुसार रोग को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया गया है ” जो (रोग) शरीर या दिमाग को सामान्य रूप से कार्य करने से रोकता है”।
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार रोग को ” शरीर या शरीर के किसी अंग या अंग की स्थिति जिसमें उसके कार्य बाधित या विक्षिप्त हैं”।के रूप में परिभाषित किया गया है।
अब बात आती है मानव रोग की तो
मानव रोग दो प्रकार के होते हैं- पहला-जन्मजात रोग
दूसरा -उपार्जित रोग
जन्मजात रोग: जन्मजात रोग वे रोग होते हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होते रहते हैं। यह रोग स्थाई होते हैं, जो आसानी से ठीक नहीं होते हैं और जन्म से ही होते हैं।जैसे
हीमोफीलिया, वर्णांधता।
उपार्जित रोग: वे रोग जो जन्म के पश्चात उत्पन्न होते हैं उपार्जित रोग कहलाते हैं। उपार्जित रोग दो प्रकार के होते हैं-1-असंक्रामक रोग
2-संक्रामक रोग –

असंक्रामक रोग :- वे रोग जो छुआछूत द्वारा नहीं फैलते असंक्रामक रोग कहलाते हैं, जैसे:-कुपोषण संबंधी रोग या पोषक तत्वों की कमी के कारण। चयापचय संबंधी रोग।
औद्योगिक संस्थानों से संबंधित रोग। मादक पेय पदार्थों द्वारा उत्पन्न रोग।
कैंसर
एलर्जी।
चोट।

संक्रामक रोग:-वे रोग जो जीवाणु, विषाणु ,कवक, प्रोटोजोआ ,क्रीमी आदि के कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से फैलते हैं संक्रामक रोग कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में एक दूसरे से फैलने वाले रोगों को संक्रामक रोग कहा जाता है। यह रोग दो तरह से फैलते हैं-1-अप्रत्यक्ष संक्रमण
2-प्रत्यक्ष संक्रमण

अप्रत्यक्ष संक्रमण:- दूषित हवा, पानी ,भोजन इत्यादि द्वारा टाइफाइड, मलेरिया, हैजा।
-संक्रमित वस्तु साबुन नल के हैंडिल एवं दरवाजे के हैंडिल इत्यादि के द्वारा -जुकाम।
-धूल ,धुआ ,मिट्टी आदि के द्वारा- टी.बी. ,टिटनेस ।
-गंदे हाथ, उंगलियों के नाखून आदि के द्वारा – क्रीमी रोग।

प्रत्यक्ष संक्रमण:- कीट या जानवरों के काटने से हाइड्रोफोबिया (रेबीज)।
खांसने,छीकने, थूकने इत्यादि से
टी. बी. ।
मृदा में उपस्थित जीवाणु से- टिटनेस।
दूषित जल के प्रयोग से- टाइफाइड।
दूषित वस्तुओं को स्पर्श करने से-
दाद, खाज , खुजली।
माता-पिता के द्वारा-एड्स
हेपेटाइटिस-B

संक्षेप में-
हम कह सकते हैं शरीर या चित् की वह स्थिति जिसके कारण संतप्त व्यक्ति को दर्द, दुष्क्रिया व तनाव
कि अनुभूति होती है या जिनके संपर्क में आने से व्यक्ति बीमारी का शिकार हो सकता है। कभी-कभी व्यापक रूप से इस शब्द का प्रयोग चोट ,विकलांगता, सिंड्रोम, संक्रमण लक्षण ,विचलक- व्यवहार और संरचना एवं कार्य की विशिष्ट विविधताओं के लिए भी किया जाता है। जबकि अन्य संदर्भो में इन्हें विशेषणीय श्रेणींयो में रखा जा सकता है। एक रोगजन या संक्रामक एजेंट एक जैविक एजेंट है।जिसके कारण इसके परपोषी को रोग या बीमारी होने की संभावना होती है।