विद्यालय में वायु की व्यवस्था

"विद्यालय में वायु की व्यवस्था"

“विद्यालय में वायु की व्यवस्था”

भूमिका_ पृथ्वी पर जीवन का मूल आधार सर्वप्रथम वायु को दिया जाता है ।जिसके द्वारा पेड़-
पौधे ,पशु -पक्षी ,इंसान तथा सभी जीवित प्राणी जीवन प्राप्त करते हैं ।ऑक्सीजन के अभाव से, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता की अल्प मात्रा से,शरीर को अनेक प्रकार की बीमारियों द्वारा ग्रसित करके, जीवन को असंतुलित कर देती है। वायु में एक मुख्य जीवन निर्वाह गैस होती है जिसे ऑक्सीजन कहा जाता है। लगभग सभी जीवित वस्तुएं इसी वायु में सांस लेती और छोड़ती हैं। नाइट्रोजन और कार्बन डाइऑक्साइड भी अन्य गैसे हैं जो पौधों और उनके
विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। अतः हमारी आज की चर्चा इसी परिप्रेक्ष्य में होने वाली है-

हम वायु से जिस ऑक्सीजन को श्वास द्वारा शरीर में ग्रहण करते हैं वह रक्त शोधन का कार्य करती है और हम जो भोजन करते हैं, उसको उपयोग के योग बनाकर शरीर की सक्रियता और विकास हेतु उपयोगी बनाती है। वह ताप और शक्ति को भी उत्पन्न करती है और इस प्रकार हमारे शरीर को गर्म रखती है। बालक के समुचित शारीरिक विकास के लिए शुद्ध वायु का और भी अधिक महत्व है। अतः अध्यापक को वायु के संगठन ,अशुद्ध वायु के दूष्परिणाम आदि से भली प्रकार परिचित होना चाहिए ताकि वह विद्यालय में स्वास्थ्यप्रद शुद्ध वायु का प्रबंध कर सके।

साधारण ताजी वायु में मुख्यतः तीन तत्व मिश्रित होते हैं-
नाइट्रोजन- 79%
ऑक्सीजन- 20.96%
कार्बन डाइऑक्साइड – 0.04%
इनके अतिरिक्त वायु में वाष्पकड़ भी होते हैं तथा अमोनिया ओजोन भी किसी न किसी स्थिति में विद्यमान रहते हैं। वायु में अप्राणिज और प्राणिज कण तथा जीवाणु भी विद्यमान होते हैं।
श्वास से निकली व़ायु ताजी वायु से निम्नलिखित बातों में भिन्न होती है_ उसमें ऑक्सीजन का अभाव होता है उसमें तीन से चार प्रतिशत तक
कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ जाती है ।इसके अतिरिक्त उसमें और अशुद्ध गैस जैसे कार्बन मोनोऑक्साइड और गंधक ऑक्साइड आदि होती है।फुफ्फुस, चर्म और विशेषकर गंदे कपड़ों से उनमें प्राणीज -कर विद्यमान होते हैं।
जल कणों की मात्रा बढ़ जाती है।श्वास से बाहर निकली वायु के संगठन की मात्रा निम्न है _
नाइट्रोजन 79%
ऑक्सीजन 16%
कार्बन डाइऑक्साइड 4.4%

अशुद्ध वायु के प्रभाव-
बंद कक्ष में थोड़ी देर ही रहने पर शारीरिक तथा मानसिक थकावट, निद्रा, भारीपन ,जम्हाई ,सर दर्द, घबराहट ,बेचैनी ,हृदय की क्रिया में धीमापन और स्वास्थ्य की तेजी का अनुभव होने लगेगा, एकाग्रता की भी कमी हो जाएगी। यदि ऐसे कमरे में निरंतर रहना पड़े तो उसके भयंकर परिणाम होंगे। शक्ति की कमी, भूख की कमी, अपच , पौष्टिकता में बाधा, संक्रमण लगने का भय, एनीमिया, शारीरिक कुरूपता आदि उसके कुछ कुपरिणाम हैं।
अच्छा! पहले यह धारणा थी कि बंद कक्ष में कुप्रभाव का कारण वायु में ऑक्सीजन की कमी है।लेकिन अभी स्पष्ट हो गया है कि 12% से कम ऑक्सीजन युक्त वातावरण में रहने पर भी लोगों को कोई बेचैनी और कष्ट नहीं होता और रहने के साधारण कक्षों में ऑक्सीजन की इतनी प्रतिशत कमी कभी भी नहीं होती।
वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि वायु का रासायनिक मिश्रण उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना वातावरण की निम्नलिखित भौतिक अवस्थाएं_
अत्यंत ऊंचा तापमान,
वायु में अत्यधिक आद्रता,
वायु में गति का अभाव,
संक्रमण उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं का अधिक मात्रा में विद्यमान होना।अर्थात वायु में यदि अधिक आद्रता एवं ताप तथा गतिहीनता हो तो उस दिशा में शरीर पर अवश्य कुप्रभाव पड़ेगा।
संवातन या हवादारी की विधियां_ हवादारी के समस्त वीधियों का उद्देश्य गंदी हवा को दूर करना तथा ताजी शुद्ध वायु को अंदर आने देना है संवातन वीधियों के दो प्रकार हैप्राकृतिक और अप्राकृतिक प्राकृतिक विधि में विद्यालय में अप्राकृतिक संवातन की अपेक्षा प्राकृतिक संवातन (नेचुरल वेंटीलेशन)के ढंग अधिक उचित है।
प्राकृतिक संवातन तीन प्राकृतिक शक्तियों पर निर्भर करता है_जैसे गैसों का मिश्रण, वायु -क्रिया वाहन धाराएं(गर्म हवा के धाराओं का ऊपर की ओर तथा शीतल वायु की धाराओं का नीचे की ओर आना)
प्राकृतिक संवातन(नेचुरल वेंटीलेशन) के अंतर्गत ही रोशनदान और खिड़कियों का उपाय निकाला गया है।

इस विधि के अंतर्गत साधनों को तीन समूह में बांटा जा सकता है_चिमनी,खिड़कियां तथा द्वारा,व दीवार अथवा छत में वायु मार्ग।

अप्राकृतिक या कृत्रिम संवातन (आर्टिफिशियल वेंटीलेशन):-
आधुनिक काल में बड़े भवनों में, जिनमें सभा आदि के लिए बड़े-बड़े हाल होते हैं,अप्राकृतिक संवातन प्रचलित हो गया है ।परंतु
अभी उनका उतना चलन नहीं है क्योंकि उनमें व्यय बहुत होता है, साथ ही यह साधन बड़े उलझन के होते हैं और उनके खराब होने का भय बना रहता है।
इस विधि के अंतर्गत दो प्रक्रिया में से किसी एक पर या सम्मिलित रूप से दोनों पर निर्भर करता है –
वायु बाहर खींचने की प्रक्रिया( वायु बिजली के पंखों के द्वारा कमरे या भवन के बाहर कर दी जाती है और शुद्ध ताजी वायु प्राकृतिक ढंग से पंखे के विपरीत दिशा में बने द्वार से कमरे में प्रवेश करती हैं।) और दूसरा वायु को आगे को धक्का देने की प्रक्रिया(इसके द्वारा वायु के तापक्रम आद्रता को परिस्थिति के अनुकूल बनाया जा सकता है।)

संक्षेप में_
हम कह सकते हैं कि हवा को गतिमय ,शीतल और उपयुक्त मात्रा में रखना,यदि वायु के तापमान को नीचा रखने, उसकी नमी की अधिकता को रोकने और उसमें गतिशीलता उत्पन्न करने का समुचित प्रबंध किया गया है तो बिना किसी कुप्रभाव के कुछ सीमा तक शरीर श्वसन- प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न अशुद्धि को सहन कर सकता है।यदि विद्यालयों में वायु के प्रवेश- निकास का प्रबंध उपयुक्त रूप से किया जाए तो संक्रमण की संभावना को भी कुछ सीमा तक कम किया जा सकता है।वायु के उचित प्रवेश -निकास के प्रबंध से न केवल जीवाणुओं का नाश और वायु की अशुद्धि ही दूर होगी वरन् बच्चों का शरीर भी स्वस्थ रहेगा और वे फिर आसानी से रोग के शिकार न हो सकेंगे।