“अभिप्रेरणा “

"अभिप्रेरणा "

“अभिप्रेरणा “
भूमिका_ यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि यदि आप कुछ सिखाना चाहते हैं तो तभी सीख सकते हैं जब आप सचमुच में सीखना चाहते हैं।आपकी मर्जी के बिना आपको कोई कुछ भी नहीं सिखा सकता चाहे कोई साधारण सा काम है या कोई मुश्किल से मुश्किल काम है।मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अभिप्रेरणा सीखने की क्रिया में विद्यार्थियों की रुचि उत्पन्न एवं उत्तेजित करता है। इसी कारण ही विद्यार्थी शिक्षा में रुचि लेता है। यह एक ऐसी शक्ति है जो मनुष्य को काम की ओर अग्रसर करती है।इस शक्ति से मनुष्य अपनी मूल आवश्यकता की पूर्ति के लिए निरंतर प्रयास करता है। अतः हमारी आज की चर्चा इसी परिप्रेक्ष्य में होने वाली है-

मोटिवेशन लैटिन शब्द ‘मोवियर’ से बना है जिसका अर्थ होता है टू मूव और टू मोटिव.
आवश्यकता ही आविष्कार की (नेसेसिटी इज द मदर आफ आल इन्वेंशन) जननी है। यह कहावत तो हम सभी ने सुनी है। मोटिवेशन को हिंदी में अभिप्रेरणा कहा जाता है। हमारी आवश्यकता या जरूरत के कारण ही मोटिवेशन उत्पन्न होता है ।अभिप्रेरणा का हमेशा बने रहना हमारी आवश्यकता के प्रकार पर निर्भर करता है अगर हम अंदर से अभिप्रेरित हैं तो यह अभिप्रेरणा हमेशा रहेगा परंतु यदि हम सिर्फ बाहरी रूप से अभीप्रेरित हैं तो यह अभिप्रेरणा कुछ समय बाद समाप्त हो जाएगा।

अभिप्रेरणा के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य हैं जिसे समझना बहुत जरूरी है जैसे- अभिप्रेरणा किसी आवश्यकता से उत्पन्न होती है।अभिप्रेरणा से किसी विशेष क्रिया को करने का संकेत मिलता है। अभिप्रेरणा मनो-व्यावहारिक क्रिया है।अभिप्रेरणा द्वारा प्रसूत क्रिया लक्ष्य प्रगति तक रहता है।
अभिप्रेरणा दो प्रकार की होती है_
सकारात्मक अभिप्रेरणा ( पॉजिटिव मोटिवेशन) और नकारात्मक (नेगेटिव मोटिवेशन) अभिप्रेरणा।

सकारात्मक अभिप्रेरणा:- सकारात्मक अभिप्रेरणा में बालक किसी कार्य को अपने स्वयं की इच्छा के द्वारा करता है जिसके द्वारा उसे यह कार्य करने में सुख की प्राप्ति होती है।बालक को सकारात्मक प्रेरणा प्रदान करने के लिए शिक्षकों के द्वारा विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन तथा परिस्थितियों का निर्माण किया जाता है। इस प्रेरणा को आंतरिक अभिप्रेरणा भी कहा जाता है।

नकारात्मक अभिप्रेरणा:- नकारात्मक अभिप्रेरणा के अंतर्गत बालक किसी कार्य को स्वयं की इच्छा से न करके, किसी दूसरे की इच्छा या बाह्य प्रभावों के कारण करता है। इस कार्य को करने से उसे किसी वांछनीय या निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति होती है। शिक्षक द्वाराप्रशंसा ,निंदा, पुरस्कार , प्रतिद्वंदिता इत्यादि का प्रयोग करके बालक को नकारात्मक प्रेरणा प्रदान की जाती है। इसे बाह्य प्रेरणा भी कहते हैं। अच्छा! तो अब हम यह भी जान लेते हैं वे कौन से तत्व या कारक हैं, जो अभिप्रेरणा को प्रभावित करते हैं। तो निम्नलिखित तत्व या कारक अभिप्रेरणा को प्रभावित करते हैं
बुनियादी या मूलभूत आवश्यकताएं:-
अधिगम कर्ता जिन कार्यों को करने के लिए अभीप्रेरित होता है, उनमें उसकी मौलिक आवश्यकताओं का प्रथम स्थान होता है।

तत्परता एवं रुचि:- अभिप्रेरणा की कुंजी रुचि के हाथ में होती है और रुचि सीखने के प्रति आकर्षण पैदा करने से जन्म लेती है।जिस सिमा तक विद्यार्थी में रुचि कायम रखी जा सकेगी ,वह उतनी सीमा तक अधिगम मार्ग पर बराबर अभिप्रेरित बना रहेगा।

कार्य के प्रति दृष्टिकोण:- हम किसी कार्य को करने के प्रति उसी रूप में अभिप्रेरित होंगे जिस रूप में हमारा कार्य के प्रति सकारात्मक नकारात्मक अथवा उपेक्षा पूर्ण दृष्टिकोण होगा।

प्रशंसा एवं आलोचना:-प्रशंसा और आलोचना दोनों शक्तिशाली उत्प्रेरक है। इन प्रेरकों में से कौन सा कब प्रभावशाली सिद्ध होगा, यह शिक्षार्थी और अध्यापक के व्यक्तित्व पर निर्भर है।

प्रतियोगिता एवं पुरस्कार:- प्रतियोगिता अभिप्रेरणा का सशक्त साधन है जो हमें कार्य में एक- दूसरे से आगे बढ़ने का प्रबल इच्छा, उत्साह तथा अवसर प्रदान करने की अपार क्षमता रखता है।
आकांक्षा का स्तर:- कहते हैं जहां चाह, वहां राह।सीखने के प्रति दिखाई गई यही चाह आकांक्षा या महत्वाकांक्षा किसी भी प्रकार के सीखने के लिए अभिप्रेरक तथा उत्प्रेरक का कार्य कर सकती है।

संक्षेप में_
हम कह सकते हैं कि अभिप्रेरणा किसी कार्य को अच्छी तरह से करने अथवा सीखने में दो तरह से सहायता करती है। एक तो उसे करने या सीखने के प्रति उपयुक्त रुचि ,आकर्षण एवं तत्परता उत्पन्न करती है तो दूसरी ओर उस आकर्षण और रुचि को बराबर बनाए रखकर कार्य की सफलता और लक्ष्यों की प्राप्ति का साधन बनाती है।