मोदी और अमित शाह के नवीनतम कार्यों के साथ, भारतीय जनता पार्टी (BJP) के अंदर एक हंसीमज़ाक फैला हुआ है, जिसे VRS स्कीम कहा जा रहा है। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में इस कार्यक्रम का विरोध और मजाक किया जा रहा है। VRS स्कीम जिसका वास्तविक अर्थ होता है स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति, लेकिन BJP नेताओं ने इसे व्यावसायिक रूप से नए अर्थों में पेश किया है।
VRS स्कीम में, ‘V’ वसुंधरा राजे को, ‘R’ रमन सिंह को और ‘S’ शिवराज सिंह चौहान को संकेतिक रूप से दिया गया है। भाजपा के अंदर इसे एक बड़े तबके की तरह देखा जा रहा है, जो यह मानता है कि यही हकीकत होगी।
विवाद का मुद्दा यहाँ यह है कि वसुंधरा राजे, रमन सिंह और शिवराज सिंह चौहान, तीनों ही पूर्व राज्यपाल और BJP के सेनानी हैं। उनका संबंध विभिन्न राज्यों से है, और उन्होंने अपने राजनीतिक क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
यह मजाक साफ़ तौर पर इस बात का प्रतिक है कि भाजपा के अंदर कुछ नेताओं को नये आयाम में लाने का प्रयास किया जा रहा है, जिससे पार्टी की नयी दिशा और नए नेताओं का समर्थन मिले।
हालांकि, इस तरह की प्रचलिता और मजाक से कुछ लोगों को यह भी दिखाई दे रहा है कि पार्टी के अंदर इकाई और समरसता की कमी है।
वसुंधरा राजे, रमन सिंह और शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में उनके प्रांतों में भाजपा को बहुमत मिला था, जो उन्हें पार्टी के अंदर महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली नेता बनाता है।
इसे सीधे शब्दों में कहा जा सकता है कि भाजपा की इस VRS स्कीम के माध्यम से नए नेतृत्व का आगमन किया जा रहा है, जो पार्टी को आगे बढ़ाने और नई दिशा देने के लिए तैयार हो सकता है।
यह भी निर्देशित करता है कि भाजपा में नये उद्देश्यों और नेताओं की आवश्यकता है, जिससे पार्टी विस्तार कर सके और राजनीतिक दायरे में अपनी वृद्धि कर सके।
इस मजाक के पीछे छुपे इस संकेत से साफ़ होता है कि भाजपा अपने नेतृत्व को लेकर नए रूप में सोच रही है और नये कदम उठाने की तैयारी में है।
भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री रहे तीन नेताओं के बीच व्यवहार समान लगता है, लेकिन उनकी स्थिति और इतिहास में अंतर है। 2018 तक सभी की स्थिति समान थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में सबको एक साथ कांग्रेस से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद सभी एक झटके में हाशिये पर पहुँच गए।
शिवराज सिंह चौहान को ज्योतिरादित्य सिंधिया का सहारा लेना पड़ा, जिससे उन्हें कुर्सी मिली। 2023 की जीत के बाद, शिवराज सिंह चौहान ने सोचा था कि उन्हें कोई हरा नहीं पाएगा, लेकिन यह भी नहीं हुआ। इससे यह भी प्रकट होता है कि राजनीतिक माहौल और चुनौतियों से भरी भाजपा में नेताओं को नए रूप से सोचना और काम करना पड़ता है।
आपको बताना चाहते है की राजनीती माहौल में एक नेता या व्यक्ति अंदर से जो सोचकर चलता वैसा ज्यादातर होता नहीं है। शिवराज सिंह चौहान ने भी यही सोचा था की 2023 जीत के बाद उनको कोई नहीं हरा पायेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं।