नमस्कार दोस्तो, आज हम बात करेंगे डोसा के बारे में, डोसा एक साउथ इंडियन डिश है। डोसा का नाम सुनते ही सबके मुंह में पानी आ जाता है, गरमा-गरम डोसा के साथ सांभर और चटनी का तड़का आत्मा को तृप्त करने वाला होता है। जब भी साउथ इंडियन खाने की बात आती है डोसा का नाम सबसे पहले लिया जाता है।
डोसा आमतौर पर सभी फूड लवर्स की पहली पसंद होता है, प्लेट में डोसा दिखते ही भूख डबल हो जाती है। डोसा के अलग-अलग प्रकार हैं और हर किसी की पसंद भी अलग होती है, लेकिन क्या आप डोसा के इतिहास के बारे में जानते हैं? डोसा सबसे पहले किसने बनाया, क्या इस डिश का नाम पहले से ही डोसा है? डोसा कैसे अस्तित्व में आया, इसकी कुछ कहानियां हैं, चलिए इस पॉपुलर साउथ इंडियन डिश के बारे में और भी बाते जानते है।
डोसा की शुरुआत कब, कहां और कैसे हुई?
कहा जाता है कि, डोसा का सबसे पहला लिखित उल्लेख तमिलनाडु के 8वीं शताब्दी के शब्दकोश में मिलता है, जबकि कन्नड़ साहित्य में डोसा का सबसे पहला उल्लेख एक सदी बाद मिलता है। 10वीं शताब्दी में डोसा के दूसरे नाम के रूप में ‘कंजम’ का उल्लेख भी मिलता है।
मंदिरों में भी मौजूद हैं डोसा के साक्ष्य:
कहा जा सकता है कि इस डिश का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है और इसे पहले कुछ अन्य नामों से भी जाना जाता था। माना जाता है कि इसके सुराग न केवल तमिल साहित्य के इतिहास में बल्कि राज्य भर के मंदिरों में भी मौजूद है। विष्णु मंदिरों में देवताओं को दिए जाने वाले भोजन को अमुधु कहा जाता है। कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी के कई शिलालेख में भी डोसा शब्द का संदर्भ मिलता है।
तिरूपति, श्रीरंगम और कांचीपुरम के विष्णु मंदिरों के शिलालेखों में उल्लेख है कि डोसा चढ़ाने के लिए धन दान करने की सेवा उस समय प्रचलित थी और इसे दोसापदी कहा जाता था। उनमें से एक कांचीपुरम वरदराजा पे रूमाल मंदिर (1524 ई.) में प्रसिद्ध विजयनगर राजा कृष्णदेवरायर द्वारा डोसा के लिए दिए गए दान का विवरण है।
रोज चढ़ाया जाता था देवताओं को डोसे का प्रसाद:
कहा गया है कि विजयनगर राजा कृष्णदेवरायर ने दोसापदी सेवा के लिए 3,000 पैनम का दान दिया था। इस दान से जमीन खरीदी गई और प्रतिदिन देवता को 15 डोसे का प्रसाद चढ़ाया जाने लगा। उसी मंदिर में विजयनगर के राजा अच्युतराय के शासनकाल के एक शिलालेख में भगवान कृष्ण के जन्म के उत्सव के दौरान डोसा चढ़ाए जाने का उल्लेख है। चेन्नई के पार्थसारथी मंदिर में सत्रहवीं शताब्दी के शिलालेखों में भी मंदिर उत्सवों के लिए डोसा प्रसाद का उल्लेख है। इसका मतलब है कि 16वीं शताब्दी तक, तमिलभाषी क्षेत्र के प्रसिद्ध पेरुमल मंदिरों में डोसा प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता था।
आज भी चढ़ाया जाता है मंदिरों में डोसा:
आज भी, अजगर कोविल, सिंगपेरुमल कोविल और वरदराज पेरुमल कोविल जैसे प्रसिद्ध विष्णु मंदिरों में डोसा चढ़ाना विशेष है। ज्यादातर मंदिरों के शिलालेखों में डोसा चढ़ाने के लिए दी गई सामग्री के माप का उल्लेख है। कुछ शिलालेखों पर अलग-अलग डोसे की रेसिपी भी बताई गई है। एक तिरूपति मंदिर में डोसे को प्रसाद के ऊपर छिड़कने का उल्लेख है। हर कोई जानता है कि डोसा चावल और उड़द दाल के घोल से बनाया जाता है, लेकिन कांचीपुरम के कुछ शिलालेखों में घोल में जीरा और काली मिर्च मिला कर मसालेदार डोसा बनाने का जिक्र है।
अभी तक 123 फीट सबसे लंबे डोसे का है वर्ल्ड रिकॉर्ड:
आजकल कई स्ट्रीट फूड वेंडर और रेस्तरां भी डोसा को अलग-अलग तरह से परोसने की कोशिश करते है। आजकल लंबे-लंबे डोसे परोसने का ट्रेंड चल रहा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि 16वीं शताब्दी के तिरुपति के एक शिलालेख में ‘पट्टनम डोसा’, एक बड़ा डोसा का उल्लेख है, जो उन दिनों बनाया जाता था। हाल ही में एमटीआर फूड्स ने 123 फीट सबसे लंबे डोसे का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है। आपको हमारी ये जानकारी कैसी लगी, आप हमें कमेंट करके बता सकते हैं। ऐसी और जानकारी आप हमारी वेबसाइट https://avmtimes.in/ पर भी देख सकते हैं।