2024 का चुनाव कही 2004 तो नहीं दोहरा देगा ?

            संवाददाता नरोत्तम शर्मा – बरबादे गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी है। हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तां क्या होगा ?  सीधी भाषा में कहा जा सकता है कि सत्ता परिवर्तन के लिए विपक्षियों को कभी कभी केवल एक मुद्दा ही काफी होता है।

जैसे 400 पार की सत्ता को केवल बोफोर्स के एक मु्द्दे ने पलट दिया था। इसके उलट अबकी बार 400 पार का नारा देने वाली सत्ता के विरुद्ध तो मुद्दों की एक लम्बी फेहरिस्त है। लेकिन सत्ता पक्ष बेफिक्र है या फिर अपने संगठन व मनेजमैंट के भोकाल तले इस बार 400 पार का नारा लगा रहा है ।

                 संगठन व जनता के बीच अपना ये मैसेज देने में कोई बुराई मैं नहीं समझता । लेकिन सच्चाई को हाई कमान व नीतिकार बाखूबी समझ रहे हैं, कि वास्तविकता क्या है ! तभी तो छोटे बड़े 44 दलों को साथ लाया गया है, क्योंकि सत्ता तक पहुंचने मे जरा सी भी चूक भारी पड़ सकती है। चर्चा है कि अन्दरुनी सर्वे में भाजपा इस बार 80 से 100 सीटें लूज कर सकती हैं।

चूंकि दस साल की इनकमबैंसी का सामना विपक्ष नहीं सत्ता पक्ष को करना है। यही वज़ह है कि टिकट वितरण में बड़ी सावधानी बरती जा रही है। और कई दिग्गजों के टिकट काट दिए गए हैं।

कुछ को विधानसभा चुनावों में ही किनारे लगा दिया गया है। इसी से समझा जा सकता है कि भाजपा सत्ता वापसी में खुद को सहज महसूस नहीं कर पा रही है।

                  सत्ता पक्ष को चाहिए कि वो अपने दस सालों के कार्यों को लेकर जनता के बीच जाएं, और भविष्य की योजनाएं बताएं। लेकिन योजनाएं आगामी 20 से 25 सालों की बताईं जा रही है, और खुद के काम ना गिनाकर विपक्षियों को कोसने का काम किया जा रहा है।

या फिर विक्टिम कार्ड खेल कर खुद को 104 गालियां देने की बात बताईं जा रही है। कभी अच्छे दिन आएंगे का नारा देने वाले मोदी जी को ऐसे अनेक सवाल है जिनके जवाब अब जनता को देने होंगे।

दुनिया की पांचवीं अर्थव्यवस्था में क्यों 80 करोड़ लोगों को मुफ्त का अनाज देना पड़ रहा है ?

क्यों देश में असमानता की दर बढ़ रही है ? क्यों चन्द लोगों के पास देश की 55% जनता के बराबर धन हैं। मैंने शुरू में लिखा है कि एक मुद्दे पर सरकार को बैकफुट पर लाया जा सकता है । जबकि मुद्दे बहुत है,तो कुछ मुद्दों पर गौर करते हैं।

                   2014 से पहले दिए गए कुछ लच्छेदार भाषणों , घोषणाओं व वायदों पर नज़र दौड़ाते हैं। जो आज मुद्दे बन गए हैं , कृषि प्रधान देश में सबसे पहले किसानों की ही बात करते हैं। किसानों की आय 22 तक दोगुनी करने की बात कही गई थी लेकिन आज़ भी किसान 37 रुपए रोजाना पर गुजारा करता नज़र आता है क्यों ?

फसलों के दाम सी ,टू +50 के हिसाब से देने की बात कही गई थी और एम एस पी को लीगल गारंटी कानून बनाने को कहा था। तो अब क्यों न्यूनतम समर्थन मूल्य भी सरकार देने को तैयार नहीं ?

जहां तक एम एस पी की बात है तो वो तो केवल 23 फसलों पर सरकार तय करतीं हैं। इसके उलट बिना सोचे-समझे सरकार तीन कृषि कानून ले आती है , किसान इनके विरोध में १३ महीनों तक सडक पर बैठा रहा। उनके रास्ते में कील कांटे बिछाने से लेकर क्या कुछ नहीं किया सबको पता है।

वार्ताओं का दौरा भी चला लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। फिर एक दिन खुद आकर कह दिया कि ये कानून हम वापस लेते हैं। अगर सरकार वार्ता के दौरान ही ये घोषणा कर देती कि हम आपकी बात मानते हुए ये कानून वापस लेते हैं। तो सरकार की जय-जयकार करते हुए किसान वापस लौट जाते।

लेकिन किसान घोषणा के तुरंत बाद नहीं लौटे और वो अपनी मुख्य मांग एम एस पी पर आ गए। इसके अलावा बिजली बिल, किसान आन्दोलन के दौरान उन पर हुएं मुकदमों के अलावा अन्य कई मांगों को लेकर  एक कमेटी बनाकर किसानों को उठा तो दिया लेकिन सरकार फिर चादर तानकर सो गई।

                बताता चलूं कि एम एस पी लागू करने की बात पर सरकार कोर्ट में बैकफुट पर आ गई। और लागू करने से मना कर दिया , और कुतर्क दिए जाने लगें कि एम एस पी को लीगल गारंटी बनाने में सरकार को 17 लाख करोड़ तो कभी 11 लाख करोड़ के घाटे की बात कही जाने लगी।

आखिर ये आंकड़ा कहा से आया कोई नहीं बता सका। करीब दो साल इंतजार करने के बाद किसान फिर सामने आ गया। किसानों को दिल्ली आने से रोकने के लिए डबल इंजन की सरकार ने दो प्रदेशो के बीच ही अंतरराष्ट्रीय सीमा बना दी आखिर क्यों ?

यदि ये किसान उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का होता तो क्या सरकार फिर भी ऐसा करती ? अहम् सवाल है। क्या पंजाब हरियाणा में कुल 23 लोकसभा सीटें होने की वज़ह से ऐसा किया गया ?

ऐसा ही दो लोकसभा वाले मणिपुर राज्य को उसको उसके हाल पर छोड़ कर क्यों किया गया ?

अब कहा जा रहा है कि मणिपुर और नागालैंड में भाजपा अपने प्रत्याशी खड़े नहीं करेंगी आखिर क्यों ऐसी बातें चर्चाओं में हैं ?

क्या 140 करोड़ के परिवार में मणिपुर , नागालैंड , पंजाब और हरियाणा शामिल नहीं है ? या फिर उनके मुद्दों व सवालों का सरकार सामना नहीं करना चाहती?

अगर हां तो फिर सौताला व्यवहार क्यों ? किसानों का मुद्दा भी सरकार को 2024 के चुनाव में चुनौती जरूर देगा। शेष मुद्दों पर अगले अंक में चर्चा करुंगा —–